झांसी ब्रेकिंग: सरकारी स्कूलों के मर्जर पर पोस्टर वॉर, ‘ये कैसा रामराज्य?’ के नारे से गरमाई सियासत
झांसी, उत्तर प्रदेश, सुल्तान आब्दी: उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति पर अब पोस्टर वॉर छिड़ गया है। झांसी के मऊरानीपुर नगर में एक ऐसा ही पोस्टर लगाया गया है, जिसने योगी सरकार की शिक्षा नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं और पूरे इलाके में बहस छेड़ दी है। यह पोस्टर मऊरानीपुर के अंबेडकर चौराहे के ठीक सामने लगा है, जो इन दिनों शहर में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है।
पोस्टर पर लिखे तीखे बोल
वायरल हो रहे इस पोस्टर पर बेहद तीखे और सीधे सवाल लिखे गए हैं। पोस्टर कहता है: “ये कैसा रामराज्य?” और इसके नीचे लिखा है: “बंद करो पाठशाला, खोलो मधुशाला!” ये पंक्तियाँ सीधे तौर पर योगी सरकार द्वारा किए जा रहे प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर को लेकर सवाल उठा रही हैं और सरकार की प्राथमिकताओं पर व्यंग्य कर रही हैं।
कौन है पोस्टर लगाने वाला?
इस विवादित पोस्टर को जनपद झांसी के मऊरानीपुर निवासी समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता हेमंत कुमार यादव ने लगवाया है। यादव ने सरकार की शिक्षा नीति पर अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए इस रचनात्मक लेकिन मुखर तरीके को चुना है। अंबेडकर चौराहे जैसे सार्वजनिक स्थान पर पोस्टर लगाने से यह सुनिश्चित हो गया है कि यह अधिक से अधिक लोगों की नज़र में आए और एक व्यापक चर्चा का विषय बने।
मर्जर नीति पर क्यों उठ रहे सवाल?
योगी सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर का उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार बताया जा रहा है। हालांकि, कई शिक्षाविदों, अभिभावकों और विपक्षी दलों का तर्क है कि इससे बच्चों को दूर के स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रॉपआउट दर बढ़ सकती है। छोटे बच्चों के लिए लंबी दूरी तय करना और नए वातावरण में ढलना भी एक चुनौती बन सकता है।
सियासी गलियारों में गरमाहट
इस पोस्टर ने झांसी की स्थानीय राजनीति में गरमाहट ला दी है। समाजवादी पार्टी पहले से ही सरकार की नीतियों पर मुखर रही है, और यह पोस्टर उसी कड़ी में एक और कदम है। यह दिखाता है कि विपक्षी दल सरकार की नीतियों को लेकर जनमानस में असंतोष को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं।
आम जनता की प्रतिक्रिया
मऊरानीपुर के अंबेडकर चौराहे से गुजरने वाले लोग इस पोस्टर पर रुककर टिप्पणी कर रहे हैं। कुछ लोग इसे सरकार की गलत प्राथमिकता करार दे रहे हैं, जबकि कुछ अन्य का मानना है कि विपक्ष सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे हथकंडे अपना रहा है। बहरहाल, यह पोस्टर अब सिर्फ एक सपा नेता का बयान नहीं रह गया है, बल्कि यह सरकारी स्कूलों के भविष्य को लेकर एक व्यापक जन-बहस का प्रतीक बन गया है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और विपक्षी दल इस ‘पोस्टर वॉर’ पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और क्या यह मुद्दा उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ लेता है।