प्रयागराज: सनातन धर्म के महाकुंभ में इस बार नारी शक्ति का एक नया इतिहास रचने की तैयारी है। महाकुंभ के मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले अखाड़ों में नव प्रवेशी साधुओं को दीक्षा देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। खास बात यह है कि इस बार बड़ी संख्या में महिलाओं को अखाड़ों में दीक्षा देने की तैयारी है, और इनमें से अधिकांश महिला संन्यासिनियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
नारी सशक्तिकरण का साक्षी बन रहा महाकुम्भ
महाकुम्भ का यह आयोजन सनातन धर्म की संस्कृति को समृद्ध करने के साथ-साथ नारी सशक्तिकरण का प्रतीक भी बनता जा रहा है। इस बार महाकुम्भ में महिला संन्यासियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है, जो कि न केवल धर्म, बल्कि समाज में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को भी प्रदर्शित करता है।
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा में सबसे अधिक महिलाओं की संन्यास दीक्षा
महिला संत दिव्या गिरि के अनुसार, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े में इस बार 200 से अधिक महिलाओं को संन्यास दीक्षा दी जाएगी। अगर सभी अखाड़ों की बात करें, तो यह संख्या 1000 के आंकड़े को पार कर सकती है। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया भी चल रही है और दीक्षा का अनुष्ठान आगामी 27 जनवरी को संभावित है।
उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं की बढ़ी रुचि
महाकुम्भ में संन्यास लेने वाली महिलाओं में खासतौर पर उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं की संख्या अधिक है। ये महिलाएं आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए संन्यास ले रही हैं। उदाहरण के तौर पर, गुजरात के राजकोट से आई राधेनंद भारती, जो इस समय कालिदास रामटेक यूनिवर्सिटी से संस्कृत में पीएचडी कर रही हैं, उन्होंने भी संन्यास लेने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि घर में सब कुछ था, लेकिन आध्यात्मिक अनुभूति के लिए संन्यास का मार्ग चुना। वे पिछले बारह वर्षों से गुरु की सेवा में लगी हुई हैं।
जूना अखाड़े ने महिलाओं को दिया नया सम्मान
महिला संत दिव्या गिरि के अनुसार, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा ने नारी शक्ति को नई पहचान दी है। महाकुम्भ से पहले जूना अखाड़े ने महिला संतों के संगठन ‘माईबाड़ा’ को नया नाम “संन्यासिनी श्री पंच दशनाम जूना” दिया है। यह प्रस्ताव महिला संतों द्वारा महंत हरि गिरि से किया गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार किया। इस बार मेला क्षेत्र में महिला संतों के लिए शिविर “दशनाम संन्यासिनी श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा” के नाम से लगाया गया है।
महाकुम्भ का इतिहास: नारी सशक्तिकरण का प्रतीक
महाकुम्भ की इस बार की इस ऐतिहासिक घटना ने यह साबित कर दिया है कि महिला सशक्तिकरण अब केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धरती पर एक सशक्त बदलाव की ओर बढ़ रहा है। नारी शक्ति की भागीदारी ने अखाड़ों में एक नया युग शुरू किया है, जो समाज में महिलाओं की भूमिका को और मजबूत करेगा।