मथुराः योजनाओं की भरमार में परिणाम का अता पता नहीं!

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  • परवान न चढ सकी देशी पौधों के सहारे खारे पानी की समस्या के समाधान की योजना
  • कटीली झाड़ियों को साफ कर गांव के रास्तों पर रोपे जाएंगे कदंब, नीम, बरगद जैसे पौधे

मथुरा। जिम्मेदार मौन हैं, योजनाओं की भरमार में परिणामों का आता पता नहीं हैं। यहां खारे पानी की समस्या है। गावों में देशी पेडों की संख्या बढाकर इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। कई बडे गांव ऐसे हैं जिनके बाहर पानी मीठा है लेकिन गांव के अंदर पानी खारा हैं। इसकी वजह भी यही है। देशी पौधों के सहारे खारे पानी की समस्या के समाधान की योजना जोर शोर से शुरू तो हुई लेकिन परिणाम पर पहुंचने से पहले ही ओझल हो गई।

सरकारी योजनाओं की जिस लुभावने अंदाज में घोषणा होती है उनका समापन भी उसी तरह हो तो अब तक गांव से शहर तक की तस्वीर बदली बदली सी होती। योजनाओं की भरामार और शोर में  परिणाम तक पहुंचने का प्रयास होता नजर नहीं आ रहा है। वर्ष 2019 में कन्हा की नगरी की सदियों पुरानी खारे पानी की समस्या का हल देशी पौधों के सहारे हासिल करने की जोरदार पहल हुई थी। इसके तहत गांवों को जाने वाले रास्तों की कटीली झाडियों को साफ कर रास्तों पर देशी पौधों कदम्ब, नीम, पीपल, बरगद जैसे पौधे रोपे जाने की योजना थी।

जनपद भर की ग्राम पंचायतों में यह काम तेजी से चला। मई 2019 तक करीब साढे चार लाख पौधे रोपे जा चुके थे। इस बीच अधिकारियों का यह दावा भी था कि इन पौधों में से 70 प्रतिशत पौधों को बचाया भी गया था। दावा किया गया था कि बंजर भूमि भी हरी भरी होगी। ग्राम पंचायतों में मौजूद बंजर भूमि पर भी वृहद स्तर पर पौधा रोपण किया जाना था। इससे गांव की बेकार पडी भूमि पर हरियाली लौटाने की योजना थी। प्रथम चरण में समस्त ग्राम पंचायतों में 100 ट्री गार्ड लगाये गये थे।

योजना सफल होती तो मनमोह लेते गांव
दावा किया गया था कि गांव को जाने वाले रास्ते बेहद हरे भरे और मनमोहक नजर आएंगे। रास्तों पर दोनों ओर देषी पौधों के रोपने के पीछे ब्रज की प्राचीन छवि को वापस लाना भी एक उद्देश्य था। जिस पर तेजी से काम शुरू हुआ था। जनपद में करीब 500 ग्राम पंचायतें हैं, प्रत्येक ग्राम पंचायत में 1000 पौधे लगाये जाने का लक्ष्य दिया गया था।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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