झांसी उत्तर प्रदेश
सुल्तान आब्दी
छोड़ आते हैं वृद्ध आश्रम मां बाप को अपने / बच्चे बड़े घरों के जो कोठियों में रहते हैं……..
मरहूम अज़ीज़ झांस्वी साहब की याद में मुशायरा / कवि सम्मेलन आयोजित…….
गजल संग्रह धूप ही धूप और मताये सुखन दयारे रुबाइयात का विमोचन
झांसी / झांसी के वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर शायर मरहूम अज़ीज़ झांस्वी जी की याद में पयाम ए इंसानियत फोरम एंव रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में राजकीय संग्रहालय में कवि सम्मेलन / मुशायरा आयोजित किया गया जिसआ शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुनीत बिसारिया, विशिष्ट अतिथि असफान सिद्दीकी समाजसेवी, आफताब आलम भेल कल्याण अधिकारी,ओ एस भटनागर, प्रोफेसर इकबाल खान, खालिद खान एंव अन्य ने शमां रोशन कर शुभारंभ किया कार्यक्रम में ग्वालियर की विख्यात शायरा और कवियत्री / सुनिधि वैश्य की पुस्तक ग़ज़ल संग्रह धूप ही धूप और झांसी के मशहूर शायर जाहिद कौंचवी की पुस्तक मताये सुखन दयारे रुबाइयात का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया सभी अतिथियों का स्वागत पयाम ए इंसानियत फोरम एंव रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा माला पहनाकर एंव बैज अलंकरण कर किया गया।
शनिवार की दोपहर झांसी के राजकीय संग्रहालय में मरहूम अज़ीज़ झांस्वी जी की याद में कवि सम्मेलन / मुशायरा का आयोजन किया गया जिसका आगाज़ उस्ताद शायर जाहिद कौंचवी की नात ए पाक से हुआ उसके पहले भेल कल्याण अधिकारी आफताब आलम, वरिष्ठ प्रोफेसर पुनीत बिसारिया ने कार्यक्रम को संबोधित कर मरहूम अज़ीज़ झांस्वी के वारे में विस्तार से बताया जिसके बाद फारुख जायसी कानुपर,ने पढ़ा कि मावूद के जितने है मयानी तूं है / कोई भी नहीं है शानी तू है इरफान झांस्वी ने पढ़ा कि उस शख्स के खो जाने का अफसोस बहुत है / पत्थर पे जो हीरे की चमक छोड़ गया है ,मयकश आज़मी आजमगढ़ ने पढ़ा रेत को जल समझ रहे हो क्या / प्यास का हल समझ रहे हो क्या , जाहिद कौंचवी ने पढ़ा कि सदाकत हार जातीं है मुहब्बत हार जाती है / यहां चालाक लोगों से शराफ़त हार जाती है,नईम जिया कानपुर ने पढ़ा चलो फुर्सत है कुछ ऐसा करें हम / गड़े मुर्दो को ही जिंदा करे हम, यूसुफ अंजान जालौन,ने पढ़ा रहना है अगर सबसे आगे, जज्बों में जवानी पैदा कर ,आरिफ़ खैलारवी, ने पढ़ा / मजनूं का इश्क वो था ये कलयुग का इश्क़ है सरफराज मासूम, ने पढ़ा सारे पहाड़ पेड़ समंदर उसी के हैं राजकुमार अंजुम, जिसपर पर तेरा करम नहीं वो सारे पत्थर डूब गये,डा. मकीन कौंचवी ने पढ़ा तल्ख़ियां सारी छोड़ दी मैंने / गम की बाहें मरोड़ दी मैंने,आजाद अंजान ने कहा छोड़ आते हैं वृद्ध आश्रम मां बाप को अपने / बच्चे बड़े घरो के जो कोठियों में रहते हैं,हास्य व्यंग के कवि सत्यप्रकाश ताम्रकार,ने पढ़ा पटाखों में आग जब लगाई मंत्री जी ने / आवाज आई घोटाला घोटाला,गनी दानिश ने पढ़ा / पूजा नहीं नमाज़ नहीं बंदगी नहीं/ जब-तक दिलो में लोगों के ईमानगी नहीं के अलावा उस्मान अश्क और मकसूद वस्तवी, ने अपने कलाम पेश किए आभार उस्ताद शायर जनाब जाहिद कौंचवी ने व्यक्त किया।

