आगरा कॉलेज के प्रिंसिपल डा. अनुराग शुक्ला की बर्खास्तगी की तैयारी

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आगरा कॉलेज के प्राचार्य डा. अनुराग शुक्ला की कुर्सी खतरे में है, क्योंकि उच्च शिक्षा आयोग ने उनकी बर्खास्तगी की तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार, चार-चार जांचों के बाद अब यह स्पष्ट हो चुका है कि डा. शुक्ला के खिलाफ गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं।

जांचों का सिलसिला

डा. अनुराग शुक्ला की नियुक्ति अक्टूबर 2021 में हुई थी, और उनकी कार्यशैली पहले से ही विवादों में रही है। पिछले साल उनके खिलाफ शिकायतें आईं थीं कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से प्राचार्य पद हासिल किया है। इसके साथ ही कॉलेज में वित्तीय घोटालों की भी शिकायत की गई थी। इस शिकायत के आधार पर शासन ने जांच का आदेश दिया था।

जून 2023 में की गई पहली जांच में जांच समिति ने डा. शुक्ला के खिलाफ सभी आरोप सही पाए। इसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया और डा. सीके गौतम को कार्यवाहक प्राचार्य नियुक्त किया गया। हालाँकि, डा. शुक्ला ने हाईकोर्ट में अपील की और अदालत ने उन्हें फिर से प्राचार्य पद पर बिठा दिया।

उच्चस्तरीय जांच और गड़बड़ियां

हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी ने 25 और 26 अप्रैल 2024 को आगरा में जांच की, जिसमें पाया गया कि डा. शुक्ला ने कॉलेज के फंड का दुरुपयोग कर लगभग 18.50 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी की है। यह भी सामने आया कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के जरिए उच्च शिक्षा आयोग को गुमराह किया था।

बर्खास्तगी की प्रक्रिया

अब, उच्च शिक्षा आयोग की नई अध्यक्ष ने डा. शुक्ला के खिलाफ सभी जांचों की समीक्षा की है और आरोपों की पुष्टि की है। आयोग ने बर्खास्तगी का निर्णय लिया है और आदेश जल्द ही जारी होने की संभावना है।

प्राचार्य पद की योग्यताएं

उत्तर प्रदेश में किसी भी डिग्री कॉलेज का प्राचार्य बनने के लिए कुछ खास योग्यताएं निर्धारित की गई हैं, जिनमें 15 साल का शैक्षणिक अनुभव, पीएचडी होना, और शोध पत्र प्रकाशित होना शामिल है। डा. शुक्ला ने फर्जी रिसर्च पेपर प्रस्तुत कर प्राचार्य पद हासिल किया, जो उनके खिलाफ एक और गंभीर आरोप है।

आगरा कॉलेज के प्राचार्य डा. अनुराग शुक्ला की बर्खास्तगी की प्रक्रिया यह दर्शाती है कि शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर गंभीरता से काम किया जा रहा है। यदि जांच में पुष्टि की गई अनियमितताएं सही हैं, तो यह शिक्षण संस्थानों की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। डा. शुक्ला की कार्रवाई शिक्षण संस्थानों में अनुशासन और नैतिकता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक उदाहरण बन सकती है।

 

 

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