आगरा: आगरा में कमिश्नरेट में एक अनोखा मामला सुर्खियों में है। जगदीशपुरा पुलिस ने पहले जिसे पीड़ित माना। एडीशनल सीपी ने जांच रिपोर्ट पर मुकदमे के आदेश दिए। 20 दिन में मामला पलट गया। जो पहले पीड़ित था वह बाद में आरोपी बन गया। एक ही थाने से एक ही मामले में दो अलग-अलग रिपोर्ट दी गई। सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस की कौन सी जांच रिपोर्ट सही है। एक अधिकारी के पास दोनों रिपोर्ट पहुंचीं। उन्होंने इस मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
शास्त्रीपुरम निवासी विशाल भारद्वाज ने 13 अक्तूबर को अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी के कार्यालय में एक प्रार्थना पत्र दिया। अपने साथ धोखाधड़ी का आरोप लगाया। धोखाधड़ी से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत किए। जमीन की खरीद फरोख्त और खतौनी की नकल के इस विवाद में अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी ने जगदीशपुरा थाना पुलिस को मामले की जांच सौंपी। जगदीशपुरा थाने में तैनात दरोगा मनोहर तोमर ने जांच के बाद विशाल भारद्वाज द्वारा लगाए जा रहे आरोपों की पुष्टि की। उनकी जांच रिपोर्ट को तत्कालीन थानाध्यक्ष जितेंद्र सिंह ने अग्रसारित किया।
जांच रिपोर्ट के आधार पर अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी ने छह नवंबर को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए। आदेश की प्रति सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस आदेश पर मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। मुकदमे के आदेश की जानकारी दूसरे पक्ष को लग गई। दूसरे पक्ष से भूपेंद्र ने इस मामले में अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी को एक प्रार्थना पत्र दिया। आरोप लगाया कि उनके खिलाफ जो शिकायत की गई है वह फर्जी है। खतौनी भी कूटरचित है। इस प्रार्थना पत्र की जांच भी जगदीशपुरा थाने भेजी गई।
तत्कालीन एसओ जगदीशपुरा जितेंद्र सिंह ने अपनी जांच में भूपेंद्र सारस्वत के आरोप सही पाए। उनके प्रार्थना पत्र पर मुकदमा दर्ज करने की संस्तुति की। एसीपी लोहामंडी दीक्षा सिंह ने तत्कालीन एसओ की जांच रिपोर्ट को अग्रसारित किया। अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी ने अपने पहले वाले आदेश निरस्त कर दिए। 20 नवंबर को भूपेंद्र सारस्वत के प्रार्थना पत्र पर मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए। इस प्रार्थना पत्र पर मुकदमा दर्ज हुआ है।