कार्यक्रम का आरंभ और कहानी का पाठ
कहानी का वाचन करते हुए डॉ अवन्तिका सिंह ने प्रेमचंद के लेखन की गहरी समझ और उनके द्वारा चित्रित समाज की वर्तमान प्रासंगिकता को उजागर किया। इस अवसर पर प्रमुख साहित्यकार और समाजिक चिंतक राजेंद्र वर्मा ने कहा कि “प्रेमचंद की कहानी कौशल के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है।” उन्होंने प्रेमचंद को एक कालजयी और भविष्यदृष्टा साहित्यकार के रूप में प्रस्तुत किया और यह भी कहा कि आज से सौ साल पहले लिखी गई यह कहानी आज के समय में और भी प्रासंगिक बन गई है।
कहानी पर विस्तृत चर्चा
अशोक कुमार वर्मा ने कहानी की प्रासंगिकता पर बात करते हुए कहा, “हिंसा परमो धर्म: आज भी अत्यंत प्रासंगिक है, और इसे पढ़कर हम महसूस करते हैं कि हम अपने आस-पास रोज़ ऐसी घटनाएं देखते हैं।” उन्होंने समाज में मानवीय मूल्यों के सर्वोपरि रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ समाज की परिपाटियों का प्रतिबिंब हैं। प्रेमचंद को केवल एक कथाकार नहीं, बल्कि एक संस्था मानते हुए उन्होंने कहा, “प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से मज़हब की असली परिभाषा दी है, जो है समाज में परस्पर सौहार्द और प्रेम को बढ़ावा देना।”
सामाजिक परिपेक्ष्य में कहानी की महत्ता
विनय श्रीवास्तव ने प्रेमचंद की साम्प्रदायिकता पर लिखी गई कहानियों में “हिंसा परमो धर्म:” को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “आज के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण में इस कहानी का पुनर्पाठ और विस्तृत चर्चा जरूरी है।”
सुश्री अन्जू सुन्दर, एक प्रतिष्ठित युवा कवियत्री, ने कहा कि इस कहानी में जामिद का पात्र मानवीय मूल्यों का प्रतीक है। “मुंशी प्रेमचंद ने समाज में अपने वास्तविक सामाजिक दायित्व का निर्वाहन किया है,” उन्होंने कहा।
सामाजिक चिंतकों की टिप्पणियां
अनिल विश्वराय, एक वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक, ने कहा कि यह कहानी आज भी प्रासंगिक है और इसके मंचन की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूली बच्चों के द्वारा इस कहानी का मंचन कराया जाए ताकि साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक सकारात्मक माहौल बनाया जा सके।
एडवोकेट वीरेंद्र त्रिपाठी, पीपुल्स यूनिटी फोरम के संयोजक, ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी कलम से समाज में व्याप्त असमानता और कुरीतियों पर प्रहार किया। उनकी कहानी समाज को सुधारने का मार्गदर्शन देती है।
जय प्रकाश, शहीद स्मृति मंच के संयोजक, ने कहा कि प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से यह बताते हैं कि असली धर्म सहानुभूति, प्रेम और सौहार्द है, न कि हिंसा और नफरत।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम का संचालन डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य अकादमी के संस्थापक महामंत्री श्री राम किशोर ने किया। उन्होंने कहा, “डॉ राही मासूम रज़ा का समस्त लेखन साम्प्रदायिकता के खिलाफ और भारतीयता की तलाश में है। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि हर माह साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक कहानी का पाठ और उस पर चर्चा की जाएगी।”
उन्होंने प्रेमचंद की इस कहानी को आज के माहौल में अत्यंत प्रासंगिक बताया और कहा, “यह कहानी पाठकों के मन में गहरे सवाल और चिंतन छोड़ती है।”