आगरा में हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना के लिए “रन फोर हाईकोर्ट बैन्च” आंदोलन, अधिवक्ता 24 दिसंबर को दौड़ेंगे

Agra Advocates Unite for 'Run for High Court Bench' Movement to Demand Establishment of High Court Bench

MD Khan
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आगरा में हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना के लिए "रन फोर हाईकोर्ट बैन्च" आंदोलन, अधिवक्ता 24 दिसंबर को दौड़ेंगे
आगरा: आगरा में हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना की मांग को लेकर अधिवक्ताओं का आंदोलन अब और तेज हो गया है। 1966 से यह मांग चली आ रही है, और इसे लेकर जनमंच द्वारा आंदोलन को नई दिशा देने का निर्णय लिया गया है। इस आंदोलन को अब “रन फोर हाईकोर्ट बैन्च” के नाम से चलाया जाएगा, जिसके तहत अधिवक्ता और आम जनता कल 24 दिसंबर, 2024 को आगरा से कलेक्ट्रेट तक दौड़ेंगे।

यह आंदोलन जस्टिस जसवंत सिंह आयोग की सिफारिशों के आधार पर शुरू किया गया है, और इसके तहत अधिवक्ताओं ने बिना हड़ताल किए हुए इसे और अधिक प्रभावी बनाने का निर्णय लिया है। आंदोलन का उद्देश्य आगरा में हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना की मांग को पूरी तरह से बल प्रदान करना है।

यूनिटी ऑफ एडवोकेट कार्यक्रम का आयोजन

इस आंदोलन के तहत 24 दिसंबर, 2024 को सुबह 11 बजे से सिविल कोर्ट आगरा में “यूनिटी ऑफ एडवोकेट” नामक एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में अधिवक्ता अपनी एकता का परिचय देंगे और हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना के लिए अपनी ताकत दिखाएंगे। इस कार्यक्रम में आगरा जनपद की छह तहसीलों में अलग-अलग तारीखों पर भी इसी तरह के आयोजन किए जाएंगे।

आन्दोलन का विस्तार

जनमंच द्वारा इस आंदोलन को राज्यभर में फैलाने की योजना बनाई गई है। इसमें उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों को जोड़ा जाएगा ताकि आंदोलन को व्यापक समर्थन मिले। इसके बाद “रन फोर हाईकोर्ट बैन्च” के नाम से बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रदेश के सभी अधिवक्ता सक्रिय रूप से भाग लेंगे।

बैठक और आयोजन की अध्यक्षता

इस बैठक की अध्यक्षता जनमंच के अध्यक्ष चौ. अजय सिंह ने की, जबकि संचालन वीरेन्द्र फौजदार ने किया। इस कार्यक्रम में आगरा एडवोकेट एसोसिएशन के महामंत्री फूल सिंह चौहान, जनमंच सचिव इरदेश कुमार यादव, अध्यक्ष पवन कुमार गुप्ता, और अन्य प्रमुख समाजसेवी और अधिवक्ता भी उपस्थित रहे।

समाप्ति की ओर बढ़ता आंदोलन

श्री तिवारी ने कहा कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक आगरा में हाईकोर्ट खण्डपीठ की स्थापना नहीं हो जाती। आंदोलन की सफलता के बाद, यह घटना भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में जानी जाएगी।

 

 

 

 

 

 

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