वर्ल्ड सेप्सिस डे पर उजाला सिग्नस रेनबो हाॅस्पिटल में हुई जागरूकता गोष्ठी
आगरा। सेप्सिस खून का संक्रमण है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव डालता है। ऐसा तब होता है जब किसी दूसरे संक्रमण से बैक्टीरिया ब्लड में एंट्री कर जाता है और पूरे शरीर में फैल जाता है। इसलिए एक खरोंच को भी नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। यह जानकारी विशेषज्ञों ने बुधवार को दी।
अमेरिकेयर्स इंडिया फाउंडेशन के सहयोग सेबवर्ल्ड सेप्सिस डे पर उजाला सिग्नस रेनबो हाॅस्पिटल में जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें आम लोगों के साथ ही पैरामेडिकल स्टाफ को सेप्सिस या सेप्टिसीमिया के प्रभाव, रोकथाम, लक्षणों से अवगत कराया गया। निदेशक डाॅ. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया कि कई बार चोट, घावों का इलाज सही तरीके से न होने भी लोग सेप्सिस की चपेट में आ जाते हैं। इसका जल्दी इलाज और बचाव के उपाय करना सबसे अधिक जरूरी है। सेप्सिस के कारण दुनिया भर में सालाना कम से कम एक करोड़ मौतें होती हैं।
मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डाॅ. राजीव लोचन शर्मा ने भी सेप्सिस की पहचान और रोकथाम पर विस्तार से बताया। फिजीशियन डाॅ. प्रकाश पुरसनानी ने कहा कि सेप्सिस के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए हर साल 13 सितंबर को विश्व सेप्सिस दिवस मनाया जाता है। डाॅ. प्राची गुप्ता ने कहा कि जांच कराकर इस रोग की जल्द पहचान से बड़े खतरे को टाला जा सकता है। इस मौके पर नर्सिंग स्टाफ ने पोस्टर प्रजेंटेशन में हिस्सा लिया। बेस्ट पोस्टर के लिए डाॅ. विशाल गुप्ता ने अनुपम शुक्ला, नेहा, रिंकू, मदन, अर्चना, सविता, अंजना, रोली, स्वाति, अतीक आदि स्टाफ को प्रशस्ति पत्र प्रदान किए।
इस दौरान हरजीत सिंह सोढ़ी, लवकेश गौतम, डाॅ. एल्डोज, सत्यप्रकाश आदि मौजूद थे।
सेप्सिस के लक्षण
सेप्सिस खून का संक्रमण है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव डालता है। यह तब होता है जब किसी दूसरे संक्रमण से बैक्टीरिया ब्लड में एंट्री कर जाता है और पूरे शरीर में फैल जाता है। सेप्सिस के कारण दुनिया भर में सालाना कम से कम एक करोड़ मौतें होती हैं। सेप्सिस के लक्षणों में तेज बुखार, ठंड लगना, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, उल्टी और दस्त शामिल हैं। सेप्सिस का जल्दी इलाज और बचाव के उपाय करना सबसे अधिक जरूरी है।