(एटा) उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार अपराध और अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है, लेकिन एटा जिले के जैथरा थाने में कुछ और ही तस्वीर देखने को मिली है। यहां की पुलिस ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसकी न तो किसी को उम्मीद थी और न ही सरकार की मंशा से इसका कोई मेल है।
16 जुलाई को थाना जैथरा क्षेत्र में लूट की घटना की सूचना मिलते ही पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू की। सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, लगातार दबिशें दी गईं। लुटेरों सहित लूट का सामान भी बरामद कर लिया गया। पुलिस इतनी सक्रियता देखकर गांव वाले भी हैरान गए।
लगातार दबिशों के बाद पुलिस ने लूट के मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। लुटेरों के पास से लूटा हुआ सामान भी बरामद कर लिया।इनमें से दो को ढकपुरा गांव से और एक को सकीट क्षेत्र से पकड़ा गया। पुलिस ने तीनों को दो दिन तक अपनी कस्टडी में रखा। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह हैरान कर देने वाला है। थाना अध्यक्ष जैथरा की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
थाने में बैठकर ही जैथरा पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट दे दी। न तो मुकदमा दर्ज किया गया, न कोर्ट में पेश किया गया, न कोई रिमांड, न मजिस्ट्रेट के सामने पेशी। थानाध्यक्ष खुद ही मजिस्ट्रेट बन गया और आरोपियों को निर्दोष घोषित कर थाने से रिहा कर दिया।
लूट जैसे संगीन अपराध के मामले में इस तरह की ढील समाज के लिए बेहद खतरनाक संदेश देती है। पुलिस के इस कृत्य ने साबित किया है कि पुलिस अपने कर्तव्यों से विमुख होकर लुटेरों और चोरों को संरक्षण दे रही है। लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब थानों में ही न्याय मिलने लगा है? अगर लूट जैसे संगीन मामलों में थानाध्यक्ष खुद ही जज बनकर फैसला भी सुनाने लगे, तो फिर अदालतों और कानून की क्या जरूरत रह जाती है?
थानाध्यक्ष की भूमिका पर उठे सवाल
लोगों का कहना है कि जिन युवकों को पुलिस ने लूट के आरोप में पकड़ा, वे दो दिनों तक हिरासत में रहे। लेकिन अचानक उन्हें छोड़ देने का फैसला चौंकाने वाला था। न एफआईआर दर्ज हुई, न किसी उच्चाधिकारी की जानकारी में यह निर्णय लिया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं पुलिस के इस कदम के पीछे कोई बड़ा खेल किया गया है।
क्या कहती है सरकार की नीति?
योगी सरकार शुरुआत से ही कानून-व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता देती रही है। अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई, बुलडोजर नीति और कोर्ट से सजा दिलवाने की सख्ती जगजाहिर है। ऐसे में एक थाने में आरोपियों को थानाध्यक्ष द्वारा ही क्लीन चिट देकर छोड़ देना, सरकार की मंशा और पुलिस की ज़मीनी हकीकत में फर्क को उजागर करता है।
अब आगे क्या?
ग्रामीणों ने इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। यदि समय रहते इस मामले पर संज्ञान नहीं लिया गया तो पुलिस की ऐसी कार्यप्रणाली अन्य थानों के लिए भी उदाहरण बन सकती है, और फिर कानून का राज सिर्फ किताबों में रह जाएगा।