नमाज के दौरान अमीर गरीब छोटे-बड़े एक ही पंक्ति में खड़े होते हैं तो सामाजिक समानता और एकता का प्रतीक बन जाती है-शेरवानी
आगरा: नमाज को आमतौर पर केवल एक धार्मिक इबादत के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके पीछे गहरी दार्शनिक और सामाजिक पहलू भी हैं। नमाज सिर्फ व्यक्तिगत इबादत नहीं, बल्कि यह सामूहिक गतिविधि भी है, जो समाज में सामाजिक समानता और एकता का प्रतीक बनती है। जब लोग मस्जिद में इकट्ठा होकर एक पंक्ति में खड़े होते हैं, तो यहां अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सभी एक समान होते हैं। इस पंक्ति में खड़े होते समय किसी भी प्रकार के भेदभाव की भावना समाप्त हो जाती है, और यह सामूहिक एकता और समानता का प्रतीक बन जाती है।
यह महत्वपूर्ण विचार वंचित समाज इंसाफ पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र से पूर्व सांसद प्रत्याशी एडवोकेट नवाब गुल चमन शेरवानी ने वंदे मातरम यूथ ब्रिगेड के दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपाध्यक्ष सैयद आरिफ अहमद के निवास पर आयोजित रोजा इफ्तार की दावत के दौरान व्यक्त किए।
नमाज और सामाजिक एकता
शेरवानी ने अपनी बातों में कहा कि नमाज केवल अल्लाह से जुड़ने का जरिया नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद और मेल-जोल का अवसर भी प्रदान करती है। नमाज से पहले और बाद में मुसलमान एक-दूसरे से मिलते हैं, हाल-चाल पूछते हैं, जो समाज में आपसी सहयोग और समर्थन की भावना को बढ़ावा देता है। यह सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करता है और लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है।
उनके अनुसार, नमाज केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, सहयोग और प्रेम को बढ़ाने का माध्यम भी है। यह उन विचारों का विरोध करती है, जो मनुष्य को अलग-अलग श्रेणियों में बांटने और भेदभाव की ओर ले जाते हैं। इसके स्थान पर नमाज सामूहिक भाईचारे, सहनशीलता और समानता को बढ़ावा देती है।
रोजा इफ्तार कार्यक्रम में उपस्थित लोग
रोजा इफ्तार के इस कार्यक्रम में कई गणमान्य लोग उपस्थित थे, जिनमें सैयद रज्जब अली, वाजिद अब्बास, शराफत अली, सलमान मलिक, साकिर हुसैन, सैयद यूसुफ शाह, नदीम नूर, अंसार अहमद, ताहिर खान, नवीन पोरवाल, सोनू अग्रवाल, एडवोकेट अच्छे खान, गुड्डू, राजेश गौतम, गुलबतन शेरवानी, रईस कुरैशी, अछनेरा वाले फुरकान सलमानी, ताजुद्दीन सैफी, रसीद अब्बास, शरीफ मुल्लाजी, जावेद अली, शाकिर अली, मोहम्मद शफीक अल्वी आदि प्रमुख थे।