साहस और शौर्य के परिचायक बने बलिदानी रामचन्दर बाबा, गौरवगाथा सुनकर नम हो जाती हैं आंखें

Dharmender Singh Malik
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बाराबंकी। सूबे की राजधानी के समीपस्थ एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की नगरी अयोध्या का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला जनपद बाराबंकी किसी पहचान का मोहताज नही है। ब्रितानिया हुकूमत मे भी अनगिनत जांबाज मां भारती के वीर सपूतों ने अपनी मातृभूमि को गोरो से मुक्त कराने को लेकर जंग-ए-आजादी में वीरगति को प्राप्त हुए। न जाने कितने लोग बहनों बहू और बेटियों की आबरू की रक्षा करते करते लड़ मर गये। वह अपने शौर्य साहस और पराक्रम के लिए आज भी याद किये जाते हैं।

तहसील क्षेत्र के ग्राम फतहाबाद निवासी रामचन्दर वर्मा बताते हैं कि 12 दिसम्बर 1944 की वह घटना आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती है। लेकिन गर्व भी होता है कि उस घटना में शामिल लोग जिन्होने अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके और लड़कर मरना कबूल किया।

संवाददाता से साक्षात्कार में वृद्ध रामचन्दर ने आगे बताया कि वह एक दौर था जब जगह जगह आजादी को लेकर आंदोलन हो रहे थे अंग्रेजो को भी पता लग चुका था कि अब ज्यादा समय तक वह यहाँ नहीं रह सकते। महिलाओं को भी गोरे अपना शिकार बना रहे थे। बकौल रामचन्दर उनके पिता जगमोहन गांव के ही बद्रीनाथ भरोसे झुर्री नाई गजोधर गौतम व उनकी पत्नी तथा अन्य लोग कानपुर गंगा जी कांवर यात्रा में जा रहे थे। मोहम्मदपुर चौकी के समीप कुछ अंग्रेज आ गये और साथ की महिला से जोर जबरदस्ती करने लगे थे। जिसका सब लोगों ने डटकर विरोध किया। उनके आगे घुटने नहीं टेके। जिससे गोरों को वहां से भागना पड़ा। वह सब लोग थोड़ा आगे बरगद के पेड़ के पास पंहुचे ही थे कि फिर कुछ ही देर बाद कई गाड़ियां भरकर दर्जनों अंग्रेज वहां आ पंहुचे।

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अंग्रेजो से लड़ते लड़ते सभी लोग घायल होकर गिर गये थे और गोरों ने गाड़ियों से कुचलना शुरू कर दिया था। उनके पिता सहित पांच और लोगो ने भी अंग्रेजो से लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी। घायल झुर्री नाई ने जंगलो से होते हुए गांव आकर जब इस संघर्ष मे मारे जाने की सूचना दी थी तो हाहाकार मच गया था। उस घटना की चर्चा अक्सर घर परिवार में होती रहती है।

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बेटा नरेन्द्र कुमार जो जिला बार एसोसिएशन का अध्यक्ष है अक्सर उस घटना के बारे में पूछता रहता है और मुझे भी बताते हुए गर्व होता है कि उसके बाबा ने अपने फर्ज के लिए अंग्रेजों से लड़कर अपनी जान दी है उनसे डरकर भागे नहीं। वृद्ध रामचन्दर कहते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ आजादी पूर्व की तमाम यादें अब धुंधली हो रही हैं लेकिन 12 दिसम्बर 1944 का वह काला दिन आज भी मेरे लिए ताजा है जब मेरे सिर से पिता का साया उठ गया था।

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संवाददाता से रूबरू नरेन्द्र कुमार वर्मा ने बताया कि पिता जी से बाबा के बारे में अक्सर जिक्र करता रहता हूँ जिससे उन्हे फख्र महसूस होता है। उनके सामर्थ्य से उन्हे प्रेरणा मिलती है। स्वाभिमान अधिकार और अपने कर्तव्य दायित्व के प्रति –ढ़संकल्प तथा भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष करने की उन्हे शक्ति मिलती है।

पौत्र नरेन्द्र ने किया पूर्वजों का नाम रोशन
नरेन्द्र कुमार वर्मा के मुताबिक 1990 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से एलएलबी कम्पलीट कर सीनियर अधिवक्ता चम्पाराम मिश्रा के साथ प्रैक्टिस प्रारंभ की। प्रथम बार वर्ष 2000 में जिला बार एसोसिएशन का सदस्य चुना गया। 2002 में मंत्री 2003 में मंत्री पुस्तकालय 2004 से 2011 तक कोषाध्यक्ष चुना गया। 2013-14 2017 व 2020 में महामंत्री वर्ष 2008 से 2011 तक सरकारी अधिवक्ता भी रहा हूँ और वर्ष 2022 में अधिवक्ता साथियों ने जिला बार एसोसिएशन बाराबंकी का अध्यक्ष चुना है।

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नगर के विकास में बनाएंगे नया कीर्तिमान
बकौल नरेन्द्र कुमार वर्मा बीते वर्ष 2022 में समाजवादी पार्टी की जनहितकारी नीतियों से प्रभावित होकर सदस्यता ली। तब से अब तक करीब चार हजार लोगों को सपा की सदस्यता दिलायी है। हाल ही होने वाले नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के चुनाव में समाजवादी पार्टी से टिकट की दावेदारी है। नगर की जनता ने साथ दिया तो जनहित में बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा। सर्वप्रथम शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना शहर के चारों कोने व नगर के मध्य वाहन पार्किंग की व्यवस्था स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार दिव्यांग एवं वृद्धजनों की सुलभता के लिए अलग से पथ निर्माण नगर भर में विभिन्न सुलभ शौचालय निर्माण फुटपाथ पर रहने वालों के लिए अलग व्यवस्था करना पिछड़े एवं विस्तारित क्षेत्रों में नाली खड़ण्जा अन्य विकास कार्य को प्राथमिकता दी जायेगी। नगरवासियों के सहयोग से नगर के विकास में नया कीर्तिमान स्थापित करेंगे।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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