आगरा: “जैसा दर्शक का जनमानस होता है, वैसा ही उस क्षेत्र का रंगमंच विकसित होता है।” यह बात हिंदी के वरिष्ठ समीक्षक और केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर रामवीर सिंह ने हिंदी रंगमंच दिवस 25 के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कही। यह आयोजन सांस्कृतिक संस्था ‘रंगलीला’, एसिड हमलों की शिकार महिलाओं का आंदोलन ‘शीरोज हैंगआउट’ और ‘ब्रज की पहली महिला पत्रकार प्रेमकुमारी शर्मा स्मृति संगठन’ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। कार्यक्रम का विषय था ‘जनमानस का दर्पण है हिंदी रंगमंच’।
प्रोफेसर रामवीर सिंह ने आजादी के आंदोलन और भारतीय समाज की आकांक्षाओं को रंगमंच में परिलक्षित होते हुए बताया। उन्होंने कहा, “जिस तरह जनता का मानस था, वैसा ही वह नाटकों में दिखता था।” उन्होंने आजादी के समय के भारत को उदाहरण देते हुए कहा कि नाटकों में वही सपना और दृश्य चित्रित होते थे, जो भारतीय समाज उस समय देखता था। “हिंदी भाषी पट्टी का नाटक इसलिए व्यापक और प्रभावशाली रहा क्योंकि वह सबसे बड़ी भौगोलिक पट्टी थी।” प्रोफेसर सिंह ने अपनी बात को विस्तार से रखते हुए हिंदी रंगमंच के योगदान को अहम बताया।
इस विषय पर हिंदी के वरिष्ठ लेखक और कथाकार अरुण डंग ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले आगरा के दो प्रमुख नाटककारों ने जो नाटक रचे थे, वे आजादी की लड़ाई और भारतीय समाज की भावनाओं से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। उन्होंने पृथ्वीराज कपूर और उनके पृथ्वी थियेटर के नाटकों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये नाटक आजादी के बाद के भारत की उम्मीदों और आकांक्षाओं से जुड़े हुए थे।
वरिष्ठ रंगकर्मी प्रोफेसर ज्योत्स्ना रघुवंशी और डॉक्टर विजय शर्मा ने 21वीं सदी में रंगमंच की दिशा पर चर्चा की और कहा कि यह दुख की बात है कि पिछले दो दशकों में रंगमंच पौराणिक और मिथकीय नाटकों से ऊपर नहीं उठ सका है। उन्होंने वर्तमान समय में रंगमंच के विषयों को प्रासंगिक और समकालीन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय की रिटायर्ड अध्यक्ष प्रोफेसर विनीता गुप्ता ने की। उन्होंने आज के मिथकीय नाटकों में समकालीन जनमानस के स्वर के अभाव पर अफसोस जताया। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर नसरीन बेगम ने किया, जबकि आयोजन का संचालन आशीष शुक्ल और रामभरत उपाध्याय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ रंगकर्मी मनोज सिंह ने किया।
इस कार्यक्रम के दौरान रंगलीला संस्था ने प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘पूस की रात’ का रंगपाठ प्रस्तुत किया। यह कथावाचन की एक विशेष प्रस्तुति थी, जिसमें अभिनय प्रथम यादव ने किया और निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल शुक्ल ने किया।
आयोजन के अंतर्गत ‘खलीफा फूलसिंह यादव सम्मान’ से मथुरा की वरिष्ठ नौटंकी कलाकार कमलेश लता आर्य को सम्मानित किया गया। स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थित रहने पर उनके पुत्र विजय कुमार विद्यार्थी ने यह सम्मान ग्रहण किया।
इस अवसर पर शहर के प्रमुख कला प्रेमी और सम्माननीय लोग उपस्थित थे। इनमें ज्योति खंडेलवाल, शलभ भारती, मनीषा शुक्ला, भरतदीप माथुर, आभा चतुर्वेदी, रुनु दत्त, नीरज जैन, डॉक्टर सीपी राय, अखिलेश दुबे, अनिल शर्मा, महेश धाकड़, सुनयन शर्मा, रोमी चौहान, गिरिजाशंकर शर्मा, मन्नू शर्मा, अनिल अरोरा, आनंद राय, अभिजीत सिंह, ब्रजेन्द्र सक्सेना, शशांक वर्मा, कृष्ण मुरारी वशिष्ठ, रवि प्रजापति, राकेश यादव, कमलदीप, अंकित उपाध्याय, और डॉक्टर राजीव शर्मा प्रमुख थे।