अलीगढ़ में 300 करोड़ का भूमि घोटाला: जांच ठप, कर्मचारी आक्रोशित – उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में राज्य कर्मचारियों के प्लॉटों पर भूमाफियाओं ने कब्जा जमा लिया है। उच्चस्तरीय जांच समिति की गतिविधियां थम गई हैं, जबकि कर्मचारी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अलीगढ़। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 300 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले की परतें अब खुलने लगी हैं। राज्य कर्मचारियों के लिए आवंटित प्लॉटों पर भूमाफियाओं के कब्जे की गूंज शासन तक जा पहुंची है। इस घोटाले की जांच के लिए शासन ने उच्चस्तरीय एसआईटी का गठन किया था, लेकिन अब यह जांच अधर में लटकी है और राज्य कर्मचारियों का धैर्य टूटता जा रहा है।
भूमाफिया और अफसरों की मिलीभगत? जांच में जानबूझकर देरी
शासन के आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग के अपर मुख्य सचिव नितिन रमेश गोकर्ण के निर्देश पर 17 जून 2024 को कमिश्नर अलीगढ़, डीआईजी, और विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी का उद्देश्य घोटाले की गहराई तक पहुंचना था, लेकिन कर्मचारियों का आरोप है कि जांच में जानबूझकर देरी की जा रही है ताकि स्थानीय अफसरों को बचाया जा सके।
कर्मचारियों का कहना है कि इस घोटाले में अफसरों की संलिप्तता उजागर होने पर उनकी गर्दन फंस सकती है, इसलिए बचाव के प्रयास हो रहे हैं। इस संदर्भ में कर्मचारियों ने डीएम अलीगढ़ से मुलाकात की और न्याय की गुहार लगाई है।
300 करोड़ का घोटाला: भूमाफियाओं को मिला संरक्षण
यह घोटाला 1989 में समिति द्वारा किसानों से खरीदी जमीन से शुरू हुआ, जब अलीगढ़ क्षेत्र के धनीपुर, किशनपुर, और असदपुर कयाम की आवासीय योजनाओं में 200 वर्ग गज के प्लॉट राज्य कर्मचारियों को आवंटित किए गए थे। समिति के चुनाव न होने का फायदा उठाते हुए कुछ स्वयंभू पदाधिकारियों ने इन प्लॉटों का फर्जी बैनामा कर भूमाफियाओं को बेचना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह फर्जीवाड़ा 300 करोड़ रुपये के घोटाले का रूप ले चुका है।
राज्य कर्मचारी अपनी मेहनत से अर्जित जमीन को बचाने के लिए लगातार शिकायत कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन से उन्हें केवल निराशा हाथ लगी है। अपनी संपत्ति को खोते देख अब कर्मचारियों ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी है।
विरोध की बयार: “आर-पार की लड़ाई होगी”
हाल के दिनों में राज्य कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर विरोध का बिगुल फूंक दिया है। उनका कहना है कि यह अब आर-पार की लड़ाई है। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती और उन्हें उनके आवंटित प्लॉट वापस नहीं मिलते, वे पीछे नहीं हटेंगे।
यह घोटाला अब सिर्फ एक भूमि विवाद नहीं, बल्कि कर्मचारियों के अधिकार और भविष्य की लड़ाई बन चुका है। अगर समय रहते इस पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आंदोलन और भी बड़ा रूप ले सकता है।