सुमित गर्ग ,
शास्त्रों के अनुसार, हर कल्प के अंत में सृष्टि परिवर्तन के लिए शिव को एक बार धरती पर अवतरण करना होता है। इसी की यादगार में हर साल हम एक ही बार महाशिवरात्रि मनाते हैं और इस अवसर पर गाते भी हैं, ‘ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश…।’ जिस प्रकार सूर्य की तेज रोशनी वातावरण में फैले अंधियारे, गंदगी, जीवाणु और कीटाणुओं को दूर करती है, वैसे ही रूहानी ज्ञान अपने दिव्य गुण और शक्तियों की पवित्र किरणों से बुद्धि की मलिनता, कलुष, विकार, बुराई और विकर्मों को भस्म कर देता है। परमात्मा के इन्हीं कल्याणकारी कार्यों के कारण उनका कर्तव्य वाचक मूल नाम शिव है। शिव का अर्थ शुभ या मंगलकारी है। जड़, जीव, प्रकृति और पुरुष सभी के सदा कल्याणकारी होने के कारण उन्हें सदाशिव भी कहते हैं।
वेद और पुराणों में परमात्मा शिव को सदा ज्योति स्वरूप, प्रकृतिपति, त्रिगुणातीत और जन्म मृत्यु के चक्र से परे, अजन्मा बताया गया है। शिव महिमा स्रोत में है कि त्रिगुणातीत ज्योति स्वरूप शिव परमात्मा, ब्रह्मा देवता के रजो गुण से नई सृष्टि रचते हैं और रुद्र देवता के तमो गुण से पतित और पुराने का विनाश करते हैं। विष्णु देवता के सतो गुण से नई सृष्टि का पालन करते हैं। अक्सर लोग भगवान शिव को शंकर और रुद्र नामी देवता के साथ मिला देते हैं। असल में, शंकर और रुद्र सूक्ष्म देहधारी देवात्मा हैं, जबकि शिव सभी देवात्माओं के रचयिता परमात्मा हैं।
शिव के लिए ही गुरुग्रंथ साहिब में गायन है, ‘मानुष को देव किए करत न लागे वार…’, यानी मनुष्य को देवता बनाने में परमात्मा को समय नहीं लगता। इसी तरह, ब्रह्म देवतायै नम:, विष्णु देवतायै नम: और शंकर देवतायै नम: का पाठ कर शिवलिंग के ऊपर तीन रेखाएं अंकित की जाती हैं। उन तीनों रेखाओं के ऊपर शिव परमात्मायै नमः कहकर तिलक लगाया जाता है। तीन देवों के भी संचालक त्रिदेव और त्रिमूर्ति शिव हैं। तीन देवों से शिव सतयुगी दुनिया की स्थापना, पालन और कलियुगी अधर्म का विनाश कराते हैं। इसलिए सृष्टि पर शिव अवतरण को त्रिमूर्ति शिव जयंती कहते हैं। वह दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप परमात्मा जो हैं।
ज्योतिर्लिंगम शिव परमात्मा ही ज्ञान सूर्य हैं। वह चार युगों वाले कल्प के अंत के समय उदित होते हैं। शास्त्रों में वर्णित उनके साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के ललाट में प्रकट और अवतरित होते हैं। मानव जीवन और विश्व पर्यावरण को शुद्ध, पवित्र, हरा-भरा और खुशहाल रखते हैं और सदाबहार का वातावरण ले आते हैं। इन्हीं दिव्य और विश्व कल्याणकारी कर्तव्यों को याद कर महाशिवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है। शिवरात्रि में ‘रात्रि’ शब्द अंधकार का सूचक है। यह मनुष्य के मन में बसी अज्ञानता, देह अभिमान, अहंकार, अधर्म और भय रूपी अंधियारे का प्रतीक है। इस विकार रूपी तमस को ईश्वरीय ज्ञानयोग की शिक्षा और साधना देने आते हैं परमपिता शिव। वह मानव जीवन और संसार से अंधकार को दूर करने के लिए अवतरित होते हैं।
शास्त्रों में है कि ज्ञान सूर्य ज्योर्तिलिंग शिव और उनके साकार माध्यम ब्रह्मा में उदय होते हैं और उनसे अनेक लोगों को रूहानी व्रत (शिव संकल्प), उपवास (ईश्वर के निकट वास), जागरण (आत्म जागृति) और आत्मा-परमात्मा मिलन कराते हैं। इससे संसार में संस्कार परिर्वतन, जीवन उत्थान, विश्व कल्याण और सृष्टि का कायाकल्प होता है। शिव आते हैं तो मानव और समूचा संसार ही सुखमय बन जाता है। सही मायने में इसे ही महाशिवरात्रि महोत्सव कहते हैं।