आपने यह कहावत तो ज़रूर सुनी होगी कि “पहला सुख निरोगी काया”, और यह निरोगी काया बनती है हमारी रसोई में। जी हाँ, आप क्या खाते हैं और कैसे खाते हैं, इसका सीधा असर आपकी सेहत पर पड़ता है। अगर आपका भोजन पौष्टिक और प्राकृतिक है, तो बीमारियाँ आपसे कोसों दूर रहेंगी। आज हेल्थ एंड फिटनेस एक्सपर्ट डॉ. दिनेश कपूर इसी महत्वपूर्ण विषय पर कुछ गहरी बातें साझा कर रहे हैं, जो आपके स्वस्थ जीवन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती हैं।
बदलती आदतें, बदलता स्वास्थ्य
डॉ. दिनेश कपूर बताते हैं कि हमारा खानपान न केवल हमारी सेहत बल्कि हमारी सोच पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यहाँ तक कि हमारे विचार भी काफी हद तक हमारे भोजन पर निर्भर करते हैं। आज जिसे हम किचन कहते हैं, वह कभी हमारा रसोई घर हुआ करता था। इस नाम के बदलाव के साथ-साथ हमारी खानपान की आदतों में भी बड़ा बदलाव आया है। एक समय था जब हमारी दादी-नानी के रसोई घर का सादा और पौष्टिक भोजन हमें हमेशा स्वस्थ रखता था। तब हम बीमार भी कम पड़ते थे। लेकिन आज, चिकित्सा सुविधाओं के विकास के बावजूद, बीमारियों के प्रकार और उनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, और इसके लिए कहीं न कहीं आज का हमारा किचन भी जिम्मेदार है।
गायब होता भोजन का अनुशासन
कुछ दशक पहले तक बाहर का खाना सिर्फ अमीर परिवारों का शौक हुआ करता था, लेकिन आज यह मध्यम वर्ग का फैशन बन गया है। हमारे रसोई घर में पहले चावल, दाल, आटा, जौ, खेत की ताज़ी हरी सब्जियां और मोटे अनाज प्रमुखता से होते थे। लेकिन आज इनके स्थान पर ब्रेड, मांस, मैदा, पिज्जा, बर्गर, बेकिंग पाउडर और कोल्ड ड्रिंक्स ने कब्जा कर लिया है। नूडल्स और बिस्किट भी अब हर किचन का हिस्सा बन गए हैं। पहले हमारे खाने और सोने का समय निश्चित होता था, लेकिन आज न तो खाने का कोई तय समय है और न ही सोने-जागने का कोई रूटीन। आजकल हम वही खाना बनाते हैं जो झटपट बन जाए, यह हम कभी नहीं सोचते कि वह कितना पौष्टिक है। और तो और, हर तरह का खाना 10 मिनट में होम डिलीवरी भी हो रहा है। फास्ट फूड का चलन तेजी से बढ़ा है, और आज देश के हर छोटे-बड़े शहर में रेहड़ी-पटरी से लेकर शॉपिंग मॉल तक फास्ट फूड की दुकानों पर भारी भीड़ देखने को मिलती है।
रसोई से दूर होती महिलाएं
गांवों में भी जीवन तेजी से बदल रहा है। अब महिलाएं भी रसोई के कामों से उकताने लगी हैं, जिसके कारण घरों में ब्रेड, मैदा और बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल बढ़ा है। पहले गांवों में ब्रेड का चलन बहुत कम था। गांव और कस्बों के लोग नाश्ते में सिर्फ दो बिस्किट खाकर रहने वाले नहीं थे। सुबह-शाम बच्चे ताज़ा दूध पीते थे और टिफिन में रोटी-सब्जी लेकर जाते थे। लेकिन आज बच्चों का टिफिन भी बदल गया है। एक समय था जब भारत में शाकाहारी लोगों की संख्या अधिक थी और शराब का सेवन हिन्दू, सिख और मुस्लिम धर्मों में, खासकर हिन्दू धर्म में वर्जित था। भोजन में दाल, चावल, रोटी, सब्जी, दही या छाछ और सलाद आम लोगों के लिए भी आसानी से उपलब्ध था। सब्जियां सस्ती थीं और मौसमी फल आम आदमी की पहुंच में थे। गांवों में तो खेत की पैदावार और मक्खन निकली हुई छाछ हमेशा आस-पड़ोस में बांटी जाती थी। नाश्ते में नमक-अजवाइन के परांठे पर मक्खन रखकर खाने वाले मेहनती भारतीय नागरिक या ग्रामीण हाई ब्लड प्रेशर के शिकार नहीं थे। मिठाइयां भी तब सिर्फ त्योहारों पर बनती थीं, और वह भी घर की औरतें शुद्ध घी या बिना मिलावट वाले तेल में बनाती थीं। खेतों में उगाई जाने वाली फसलों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं होता था। आज बिना रासायनिक खाद के अनाज उगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन कहते हैं न दुनिया गोल है। पुराने जमाने में जिसे रूखा-सूखा खाना कहते थे, आज वही एलीट क्लास का भोजन बन गया है।
जीवनशैली में आया व्यापक बदलाव
आज हर जगह धीरे-धीरे जीवनशैली में बदलाव आया है। महिलाओं ने रसोई के साथ-साथ आर्थिक मोर्चा भी संभाल लिया है। संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों का चलन बढ़ा है। ब्रेड, रिफाइंड मैदा और बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल बढ़ा है। केक, मैगी, आइसक्रीम, बिस्किट, जैम, कस्टर्ड आदि के जरिए कई खाद्य रंगों, इमल्सीफायर और प्रिजर्वेटिव के रूप में कई रसायन हम अपने पेट में डालने लगे हैं। हमारे भोजन में फाइबर और पोषक तत्वों की भारी कमी आने लगी है। बच्चे और बड़े अन्य आकर्षणों के चलते दूध पीने से भी कतराने लगे हैं। सांस्कृतिक परंपराओं से दूर होने के कारण धूम्रपान, शराब और मांसाहार का चलन भी बढ़ गया है। अब तो यह हाल है कि पिछले दो दशकों में हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों की संख्या लगभग चौगुनी हो गई है, जो कि एक चौंकाने वाली बात है।
धीरे-धीरे लौट रही समझदारी
तेजी से बदलती दिनचर्या में आज सेहत के प्रति जागरूक और एलीट क्लास के लोगों के लिए मिलेट्स, मोटे अनाज और ऑर्गेनिक सब्जियां-फल जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। जिस तरह से पहले पश्चिमी जीवनशैली अपनाने वाले भारतीयों ने पश्चिम की तरह तेजी से फास्ट फूड को अपनाया था और फिर मध्यम वर्ग ने उसे अपने जीवन का अटूट हिस्सा बना लिया, उसी तरह अब एक बार फिर वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। उच्च वर्ग शुद्ध देशी खानपान की तरफ लौट रहा है और उसके पीछे-पीछे मध्यम वर्ग भी वही राह अपना रहा है। हालांकि, आज शुद्ध और ऑर्गेनिक चीजें मध्यम आय वर्ग और गरीब वर्ग की पहुंच से काफी दूर हैं, लेकिन धीरे-धीरे एक बार फिर ऑर्गेनिक खेती का चलन बढ़ा है और मोटे तथा बिना रासायनिक खाद के उपयोग वाली खाने की चीजों पर जोर दिया जा रहा है।
तो दोस्तों, हमारी आपको यही सलाह है कि अपने किचन को फिर से रसोई घर में बदलें। फास्ट फूड, मैदा, प्रोसेस्ड फूड, झटपट बन जाने वाले खाने, ऑयली, मसालेदार और जंक फूड को अपने रसोई से हमेशा के लिए विदा करें और उसकी जगह हरी सब्जियां, ऑर्गेनिक अनाज और मिलेट्स को अपने आहार में शामिल करें। फिर देखिए कैसे आपके जीवन में अद्भुत बदलाव आता है!