आगरा : हिंदी दिवस के अवसर पर 10 जनवरी को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक आयोजन किया गया, जिसमें “भारत ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु” के तत्वावधान में “विश्व में हिन्दी, हिन्दी में विश्व” विषय पर एक आभासी साहित्य-विमर्श का आयोजन हुआ। यह आयोजन हिंदी भाषा के वैश्विक प्रसार और उसकी भूमिका को समझने के लिए किया गया था।
हिंदी भाषा की दुनिया में बढ़ती स्वीकार्यता
इस कार्यक्रम की शुरुआत संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने की, जिन्होंने हिंदी भाषा के समग्र प्रसार के लिए 2018 से “साहित्य सेतु” संस्था द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह संस्था न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी भारतीय साहित्यकारों और प्रवासी लेखकों को एक मंच पर लाकर हिंदी भाषा के विमर्श और गोष्ठियों का आयोजन करती है।
विशेष अतिथियों ने रखे विचार
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भगवान सिंह जी, प्रसिद्ध हिंदी भाषा विज्ञान विद, ने हिंदी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “भारत सांस्कृतिक और भाषा विज्ञान की विरासत का देश है। हिंदी और बोलियाँ भारतीय समाज की समृद्धि का प्रतीक हैं।”
जी. हरिसिंह पॉल ने कहा, “वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है और यह विदेशी समुदाय के बीच भी एक लोकप्रिय भाषा बन रही है।”
हैदराबाद के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो० ऋषभदेव शर्मा ने हिंदी के प्रसार पर जोर देते हुए कहा, “आज हिंदी भाषा ने अपना स्थान वैश्विक मंच पर स्थापित किया है। इंटरनेट के जरिए यह ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को ग्रहण कर खुद को समृद्ध कर रही है। मेरा सपना है कि हिंदी दुनिया भर के ज्ञान की खिड़की बन सके।”
हिंदी को समृद्ध बनाने की दिशा में हर किसी का योगदान
इस अवसर पर चन्द्रकांत पाराशर, हिंदी-सेवी और संपादक, ने हिंदी भाषा के व्यवहारिक पक्ष पर चर्चा करते हुए कहा कि, “हिंदी को लेकर हमें दृष्टिकोण बदलना होगा, ‘हिंदी की बात’ से अधिक ‘हिंदी में बात’ पर बल देना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी भी हिंदी भाषा को सम्मानित कर सके।”
मुख्य अतिथि श्रीमती जया वर्मा (लंदन) ने विदेशों में हिंदी भाषा की स्थिति पर बात की और कहा, “हिंदी अब एक सशक्त और विश्वव्यापी भाषा बन चुकी है। यह देश और विदेश के बीच एक पुल का काम करती है।”
भारतीय भाषाओं का संगम
डा० आर रमेश आर्या, पूर्व निदेशक राजभाषा विभाग, ने आदिवासी और जनजातीय भाषाओं को हिंदी में समाहित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका मानना था कि भारत के लोक साहित्य में इन भाषाओं का बहुत योगदान है, जो हिंदी को और भी समृद्ध बनाएगा।
प्रांजल धर (दिल्ली) ने हिंदी के वैश्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हिंदी न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में एक प्रमुख भाषा के रूप में उभर रही है। यह भाषा रोजगार, विज्ञान, और तकनीकी क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रही है।”
संस्कृति और पहचान की भाषा
डा. कीर्ति बंसल (दिल्ली) ने हिंदी के इतिहास और महत्व पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “हिंदी की शक्ति यह है कि यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है।”
समाज के हर क्षेत्र में हिंदी का योगदान
इस कार्यक्रम में आशुतोष (लंदन) ने अपनी कविता प्रस्तुत की, “हिंदी मिट्टी से जुड़कर, रहने का हुनर देती है,” जो इस बात को दर्शाता है कि हिंदी न केवल एक भाषा है, बल्कि यह व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ती है।
साहित्य और विज्ञान में हिंदी का प्रभाव
वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल बघेल मधु (कनाडा) ने हिंदी भाषा के वैज्ञानिक, साहित्यिक और व्यावसायिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “हिंदी भाषा आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है और यह भाषा अब दुनिया के कई देशों में बोली और समझी जाती है।”
संविधान और अधिकारों की भाषा
डा. विमल कुमार शर्मा, रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, ने हिंदी को एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा, “हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने से भारत के वैश्विक प्रभाव को और मजबूती मिलेगी।”
सफल आयोजन और धन्यवाद ज्ञापन
इस आयोजन की सफलता इस बात से भी प्रमाणित होती है कि आयोजन के समापन के बाद भी श्रोताओं का उत्साह बना रहा और उनका सक्रिय सहभागिता देखने को मिला। संस्था के उपाध्यक्ष डा. बलराम गुमास्ता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि, “हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित करने के लिए ‘भारत ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ की भूमिका बहुत अहम है।”
इस आयोजन से यह स्पष्ट होता है कि हिंदी भाषा न केवल भारत की पहचान है, बल्कि अब यह विश्वभर में एक महत्वपूर्ण संवाद का माध्यम बन चुकी है। यह भाषा हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को संजोते हुए, वैश्विक ज्ञान की खिड़की बनने की ओर लगातार अग्रसर हो रही है। हिंदी को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाने के लिए हर भारतीय का योगदान महत्वपूर्ण है।