बात बात पे जंग: व्यंग्य और हास्य के बदलते रंग

Dharmender Singh Malik
6 Min Read
बात बात पे जंग: व्यंग्य और हास्य के बदलते रंग

बृज खंडेलवाल 

पिछले दो दशकों में हमने एक पूरी जमात को गुम होते देखा है। वो जमात जो हमें हंसाती थी, गुदगुदाती थी, और सोचने पर मजबूर करती थी। व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट, और हास्य के बादशाह अब धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं।

 

उनकी जगह यूट्यूबर्स और स्टैंड-अप कॉमेडियन ने ले ली है, जिनके चुटकुलों में गालियों और अश्लीलता का बोलबाला है। ये वो दौर है जब हंसी की जगह चीखने-चिल्लाने, मार-पीट, और नफरत भरे संवादों ने ले ली है। क्या यही है आज की लोकतांत्रिक हकीकत?

 

एक जमाना था जब अखबारों की पहचान लक्ष्मण, रंगा, सुधीर धर, विजयन और शंकर जैसे कार्टूनिस्टों के उम्दा कार्टूनों से होती थी। उनके कार्टून सिर्फ हंसाते ही नहीं थे, बल्कि समाज और राजनीति पर गहरी चोट करते थे। आर.के. लक्ष्मण के “कॉमन मैन” ने हर भारतीय को अपनी छवि दिखाई, और शंकर के कार्टून ने नेताओं की पोल खोल दी।

 

मगर आज? अखबारों में कार्टून गायब हैं, और राजनीति से हास्य गायब हो गया है। ऐसा लगता है कि अखबार डरते हैं, कार्टूनिस्ट डरते हैं, और हम सब डरते हैं। क्या यही है आजादी का मतलब? चो रामास्वामी की तमिल में तुगलक पत्रिका, शरद जोशी के व्यंग, खुशवंत सिंह के कटाक्ष, काका हाथरसी की कविताएं, अब कहां गायब हो गए इस परंपरा के वारिस! फिल्मों से जॉनी वॉकर, महमूद, देवेन वर्मा, जौहर, ॐ प्रकाश टाइप कॉमेडियंस गायब हुए, टीवी से कॉमेडी के सीरियल्स।

राजनीति और हास्य का रिश्ता हमेशा से जटिल रहा है। एक जमाने में संसद में मजाक, शेर-ओ-शायरी, और हंसी-मजाक का दौर था। पीलू मोदी और राज नारायण जैसे नेता खूब हंसाते थे। मगर आज? संसद हो या विधानसभा, सभी जगह मान्यवर गंभीर मुद्रा में बैठे रहते हैं। हंसी-मजाक की जगह गंभीरता ने ले ली है। क्या यही है लोकतंत्र की परिभाषा?

आज के दौर में राजनीतिक या धार्मिक हस्तियों पर व्यंग्य करना जानलेवा हो सकता है। कार्टूनिस्ट और कॉमेडियन धमकियों, ऑनलाइन उत्पीड़न, और कानूनी कार्रवाई का शिकार हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, विवादास्पद धार्मिक हस्तियों को चित्रित करने वाले कार्टूनिस्टों को व्यापक विरोध और धमकियों का सामना करना पड़ा है। भारत में भी, राजनीतिक नेताओं या धार्मिक हस्तियों की आलोचना करने वाले कार्टूनिस्ट अक्सर ऑनलाइन ट्रोलिंग और कानूनी कार्रवाई का शिकार होते हैं।

मगर, यह सब इतना भी निराशाजनक नहीं है। भारत में कुछ बहुत ही मज़ेदार लोग हैं जो हंसी की मशाल जलाए रखते हैं। वीर दास, बस्सी, उपमन्यु, केनी , और कल्याण रथ जैसे कॉमेडियन ने हास्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। यूट्यूब पर कैरी, डॉली, भुवन, आशीष जैसे क्रिएटर्स ने हंसी को नया रंग दिया है। मगर, इनमें से ज्यादातर राजनीति से दूर भागते हैं।

 

कपिल शर्मा के शो में नेता नहीं आते, और वह खुद भी राजनीति से दूर रहते हैं। क्या यही है हास्य की आजादी? कुछ श्रोता और दर्शक टीवी न्यूज चैनल को मनोरंजन के लिए देखते हैं, जब एंकर चिल्लाता है या लड़वाता है तो बहुत मजा आता है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अक्सर आपत्तिजनक समझे जाने वाले कंटेंट को हटा देते हैं, कभी-कभी स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बिना। इससे सेल्फ-सेंसरशिप की स्थिति पैदा हो जाती है। कॉमेडियन और क्रिएटर्स को अपने कंटेंट को लेकर सतर्क रहना पड़ता है। हिंसा की धमकियों के कारण कई कॉमेडियन के शो रद्द हुए हैं। इंटरनेट शटडाउन और सेंसरशिप का इस्तेमाल असहमति की आवाज़ों को दबाने के लिए किया जाता है, जिसमें हास्य कलाकार और ऑनलाइन क्रिएटर भी शामिल हैं।

मगर, यह सब इतना भी निराशाजनक नहीं है। भारत में कुछ बहुत ही मज़ेदार लोग हैं जो हंसी की मशाल जलाए रखते हैं। स्टैंड-अप कॉमेडियन, यूट्यूबर्स, और ब्लॉगर्स का उदय लचीलापन और रचनात्मकता की स्थायी मानवीय भावना को प्रदर्शित करता है। ये नई आवाज़ें राजनेताओं और सामाजिक मुद्दों का मज़ाक उड़ाती रहती हैं, यह साबित करते हुए कि हास्य को आसानी से चुप नहीं कराया जा सकता।

ह्यूमर टाइम्स की प्रकाशक मुक्ता गुप्ता कहती हैं, “राजनीतिक कार्टूनिंग का पतन एक बड़े सामाजिक बदलाव का प्रतीक है। ग्राफिक डिज़ाइन और एनिमेटेड पात्रों का उदय, तकनीकी रूप से उन्नत होते हुए भी, अक्सर पारंपरिक रेखाचित्रों की वैचारिक गहराई और सरलता नहीं रखता है।”

हास्य और व्यंग्य सिर्फ मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि सत्ता को जवाबदेह ठहराने, सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने, और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक तंत्र हैं। खुले समाजों में, हास्य और व्यंग्य स्वतंत्रता, सहिष्णुता, और उदार मूल्यों के महत्वपूर्ण बैरोमीटर के रूप में काम करते हैं। मगर, आज के दौर में हास्य और राजनीतिक व्यंग्य के लिए जगह कम होती जा रही है, जो बढ़ती असहिष्णुता, धार्मिक कट्टरता, और राजनीतिक शुद्धता से प्रभावित है।

फिर भी, इन चुनौतियों के बीच, आशा की किरणें हैं। हंसी की जंग जारी है, क्योंकि, जब तक हंसी है, तब तक जिंदगी है। और जब तक जिंदगी है, तब तक हंसी है। शायद इंसान के अलावा कोई जीव हंसने की काबिलियत नहीं रखता है।

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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