चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी द्वारा अश्लील सामग्री देखना या आत्म-संतुष्टि में लिप्त होना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति के प्रति क्रूरता नहीं माना जाएगा। अदालत ने एक पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने अपनी पत्नी की पोर्नोग्राफी देखने और हस्तमैथुन करने की आदत पर आपत्ति जताई थी।
दो जजों की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि कानून के तहत पत्नी का यह व्यवहार तलाक का वैध आधार नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि कोई विवाहित महिला किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध स्थापित करती है, तो उसे निश्चित रूप से तलाक का कारण माना जा सकता है, लेकिन स्वयं से संतुष्टि प्राप्त करना इस श्रेणी में नहीं आता।
अदालत ने स्पष्ट किया कि पत्नी के इस कृत्य को किसी भी तरह से पति के प्रति मानसिक या शारीरिक क्रूरता के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
2018 में हुई थी शादी, 2020 से अलग
याचिकाकर्ता पति और उसकी पत्नी का विवाह 1 जुलाई, 2018 को करूर के अरुलमिघु पसुपतीश्वर मंदिर में संपन्न हुआ था। हालांकि, शादी के कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मतभेद शुरू हो गए और वे 9 दिसंबर, 2020 से अलग-अलग रह रहे थे। यह दोनों की ही दूसरी शादी थी।
इससे पहले, फरवरी 2024 में परिवार न्यायालय ने पति की तलाक की अर्जी को अस्वीकार कर दिया था। परिवार न्यायालय के इसी आदेश को चुनौती देते हुए पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
पति ने लगाए थे कई गंभीर आरोप, पत्नी ने किया खंडन
अपनी याचिका में पति ने पत्नी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें पत्नी का अत्यधिक खर्चीला होना, अश्लील फिल्में देखने की आदत, बार-बार हस्तमैथुन करना, घर के कामकाज में रुचि न लेना, ससुराल वालों के साथ बुरा व्यवहार करना और घंटों तक फोन पर बातचीत करना जैसे आरोप शामिल थे।
वहीं, पत्नी ने अपने जवाब में पति द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का पुरजोर खंडन किया। उसने कहा कि यदि ये आरोप सही होते, तो वे दोनों लगभग दो साल तक एक साथ कैसे रह पाते।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी इस बात पर गौर किया कि पति अन्य क्रूरता संबंधी आरोपों को भी ठोस प्रमाणों के साथ साबित करने में विफल रहा। इसके अतिरिक्त, पति ने यह भी दावा किया था कि उसकी पत्नी यौन रोग से पीड़ित है, जबकि उसने यह भी कहा कि वह शारीरिक रूप से परेशान है। अदालत ने इन दावों को भी अपुष्ट पाया।
अंततः, मद्रास उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए पति की तलाक की अपील को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी का पोर्नोग्राफी देखना या आत्म-संतुष्टि में लिप्त होना तलाक का वैध आधार नहीं है और इसे पति के प्रति क्रूरता नहीं माना जा सकता।