सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जेंडर न्यूट्रल कानून की याचिका, कहा – “कानून बनाना संसद का काम है, अदालत का नहीं”

By MD Khan
4 Min Read

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न (IPC 498A) और भरण-पोषण (CrPC 125) कानूनों को जेंडर न्यूट्रल बनाने की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना संसद का कार्य है और दुरुपयोग का आधार बनाकर प्रावधानों को रद्द नहीं किया जा सकता।

मामला क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज उत्पीड़न (IPC 498A) और भरण-पोषण (CrPC 125) से जुड़े प्रावधानों को जेंडर न्यूट्रल बनाने और उनके कथित दुरुपयोग को रोकने की मांग पर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून बनाना या उनमें संशोधन करना न्यायपालिका का नहीं, बल्कि विधायिका (संसद) का काम है।

कोर्ट की टिप्पणी: “कानून का दुरुपयोग हर जगह है”

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:

“हमें बताइए ऐसा कौन-सा कानून है जिसका दुरुपयोग नहीं होता? सिर्फ दुरुपयोग का हवाला देकर कानून रद्द नहीं किया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी पुरुष या उसके परिवार के साथ अन्याय हुआ है, तो वह व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर कर सकता है। किसी NGO को उनके behalf में कोर्ट आने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

NGO ‘जनश्रुति’ की मांग क्या थी?

जनश्रुति नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा दायर जनहित याचिका में निम्न मांगें की गई थीं:

  • IPC की धारा 498A (दहेज उत्पीड़न) को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए

  • CrPC की धारा 125-128 (भरण-पोषण) और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 में लैंगिक संतुलन लाया जाए

  • वैवाहिक विवादों में पुरुषों और महिलाओं दोनों को बराबर सुरक्षा दी जाए

क्या बोले जज?

  • कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 498A, जिसे अब BNS की धारा 84 के रूप में जाना जाता है, महिलाओं की सुरक्षा के लिए है और इसके पीछे संसद का नीति निर्धारण है, जिसे अदालत चुनौती नहीं दे सकती।

  • संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत संसद को महिलाओं और बच्चों के हित में विशेष कानून बनाने का अधिकार है।

  • अदालत ने कहा कि “दुरुपयोग का हवाला देकर किसी कानून को समाप्त नहीं किया जा सकता।”

जेंडर न्यूट्रल कानून की बहस पर कोर्ट का रुख

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि विदेशों में पुरुष भी घरेलू हिंसा और भरण-पोषण के लिए मुकदमे दायर कर सकते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा:

“हमें दूसरे देशों की नकल क्यों करनी चाहिए? भारत एक संप्रभु देश है और हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे के अनुसार कानून बनने चाहिए।”

दिशा-निर्देश जारी करने की मांग भी खारिज

NGO के वकील ने कोर्ट से मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की अपील की। इस पर कोर्ट ने कहा कि अदालतों की संख्या, संसाधन और प्रशासनिक ढांचे जैसे मुद्दे इसमें बाधा बनते हैं, और यह कार्य न्यायपालिका का नहीं बल्कि प्रशासन और सरकार का है।

महत्वपूर्ण टिप्पणी

जस्टिस सूर्यकांत ने दो टूक कहा:

“एक दिन ऐसा भी मामला आएगा जिसमें एक महिला का उसके पति ने सिर काट दिया होगा। क्या हम वहां भी ‘दुरुपयोग’ के सिद्धांत को लागू करेंगे?”

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version