पिनाहट में वित्तीय गबन के दोषी घोटालेबाज हेडमास्टर पर मेहरबान शिक्षा विभाग, जांच रिपोर्ट को दरकिनार कर दूसरी जांच की बात करने लगे शिक्षाधिकारी

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पिनाहट में वित्तीय गबन के दोषी घोटालेबाज हेडमास्टर को अभयदान

आगरा। घोटालों और अनियमितताओं के लिए कुख्यात हो चुका आगरा का बेसिक शिक्षा विभाग अपनी छवि को सुधारने के लिए गंभीर नहीं दिख रहा। विभागीय कार्यालयों से लेकर परिषदीय विद्यालयों में भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं के प्रकरण सामने आने के बावजूद उन पर कार्रवाई की जगह उनको पुरजोर तरीके से दबाने की हो रही कोशिशें प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को पलीता लगा रही है।

बेसिक शिक्षा विभाग की जड़ों में फैल चुके भ्रष्टाचार के दीमक को समाप्त करने के लिए विभागीय अधिकारी तैयार नहीं दिख रहे हैं। जिन गंभीर मामलों में कार्रवाई करके बीएसए आगरा नजीर प्रस्तुत कर सकते थे, लेकिन किन्हीं कारण वश उनके हाथ बांध गए। जिसका फायदा अनियमितताओं एवं घोटाले के दोषी जमकर उठा रहे हैं।
आपको बता दें कि ब्लॉक पिनाहट अंतर्गत पूर्व माध्यमिक विद्यालय नगला भरी, प्राथमिक विद्यालय पिनाहट प्रथम, कंपोजिट पूर्व माध्यमिक विद्यालय नयाबांस एवं प्राथमिक विद्यालय बसई गुर्जर के खिलाफ जांच हेतु बीएसए आगरा के लिखित निर्देश पर ही दो सदस्यीय जांच कमेटी के सदस्य खंड शिक्षा अधिकारी अछनेरा सौरभ आनंद एवं जिला समन्वयक एमडीएम आकर्ष अग्रवाल ने संयुक्त रूप से विभिन्न बिंदुओं पर अपनी जांच करके उच्चाधिकारियों को संबंधित हेडमास्टर एवं सहायक अध्यापकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की थी।

चार महीने बाद किसी पर नहीं हुई कार्रवाई

बेसिक शिक्षा विभाग में पिनाहट के चारों विद्यालयों का प्रकरण तूल पकड़ता जा रहा है। शिक्षाधिकारी और नियम विरूद्ध तरीके से वर्षों से जिला मुख्यालय पर अटैचमेंट पर तैनात बाबू पर कार्रवाई नहीं करने को लेकर उंगली उठ रही है। कथित रूप से इस मामले में मोटे लेनदेन की भी चर्चा होने लगी है, जिसके बाद संबंधितों को बचा लिया गया।

कंपोजिट ग्रांट डकारने वाले से लेकर विद्यालय से नदारद रहने वाली प्रधानाध्यापिका हुई बेखौफ

शिक्षाधिकारियों की मेहरबानी से भ्रष्टाचार में संलिप्त हेडमास्टर पूरी तरह बेखौफ हो चुके हैं। नयाबांस के जिस प्रधानाध्यापक के खिलाफ जांच कमेटी ने कंपोजिट ग्रांट और एमडीएम की धनराशि डकारते हुए वित्तीय गबन का दोषी पाया गया था। प्रधानाध्यापक के निलंबन और गबन की रिकवरी की संस्तुति हुई थी। संबंधित विद्यालय का प्रधानाध्यापक बच्चों के निवाले को डकारता रहा, शिक्षाधिकारियों द्वारा संज्ञान नहीं लिए जाने के कारण वह बेखौफ बना रहा।उधर बसई गुर्जर की प्रधानाध्यापिका अनंतिमा सोलंकी भी अपने रुतबे में सभी पर भारी पड़ रही है। विगत जनवरी माह से लगातार विद्यालय से नदारद रहने के बावजूद उसको निलंबित नहीं किया गया है। बसई गुर्जर के विद्यालय में प्रधानाध्यापिका की अनुपस्थिति में जो सहायक अध्यापक चार्ज संभाल रहा है, उसको भी विद्यालय के हितों से कोई सरोकार नहीं दिखता। ग्रामीणों के अनुसार विद्यालय में बच्चों को एमडीएम तक नसीब नहीं है। इसके खिलाफ भी कार्रवाई की संस्तुति हुई थी। इन दोनों विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से प्राथमिक विद्यालय पिनाहट प्रथम और नगला भरी के विद्यालय के दोषी भी इन्हीं की राह पर चल रहे हैं। इन दोषियों के द्वारा क्षेत्र में यह प्रचारित होने लगा है कि इतने समय बाद हम पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अब क्या होगी।

जांच रिपोर्ट को ही दरकिनार करने लगे बीएसए

पिनाहट के परिषदीय विद्यालयों पर कार्रवाई के विषय में बीएसए आगरा से वार्ता करने पर उनका जो जवाब मिला बेहद चौंकाने वाला था। बीएसए ने शुरूआत में तो बोल दिया कि संबंधित विद्यालयों की दुबारा जांच कराई जाएगी। जब उनसे पूछा गया कि जो जांच रिपोर्ट सौंपी गई है वह गलत है क्या, तुरंत उनके द्वारा अपनी बात को पलट लिया गया। उनके स्तर से कार्रवाई हेतु कोई भी संतुष्टिजनक जवाब नहीं मिला।

पिनाहट के चार विद्यालयों – पूर्व माध्यमिक विद्यालय नगला भरी, प्राथमिक विद्यालय पिनाहट प्रथम, कंपोजिट पूर्व माध्यमिक विद्यालय नयाबांस और प्राथमिक विद्यालय बसई गुर्जर के हेडमास्टरों और सहायक अध्यापकों को दोषी ठहराया गया था। जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ वित्तीय गबन, अनियमितताएं और गंभीर लापरवाही के आरोप लगाए गए थे।

आश्चर्यजनक बात यह है कि जांच रिपोर्ट के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका बढ़ जाती है। मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का कहना है कि वे फिर से जांच करेंगे, लेकिन इससे पहले की जांच रिपोर्ट को दरकिनार करने का कोई तर्क नहीं है।

इस मामले में संबंधित अधिकारियों की चुप्पी और लापरवाही से शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके और शिक्षा विभाग की छवि बचाई जा सके।

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