खेरागढ़: दरिंदगी के बाद पुलिस का दोहरा अत्याचार – पीड़िता और परिवार को सिस्टम ने भी रुलाया

5 Min Read

खेरागढ़ (आगरा): खेरागढ़ में एक मासूम बच्ची के साथ हुई घिनौनी वारदात ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। लेकिन इस त्रासदी के बाद, पीड़ित परिवार को जिस तरह के पुलिसिया रवैये का सामना करना पड़ा, वह भी कम पीड़ादायक नहीं है। शुरुआती जांच में सक्रियता दिखाने वाली खेरागढ़ पुलिस पर अब असंवेदनशीलता और लापरवाही के गंभीर आरोप लग रहे हैं, जिसने पीड़ित परिवार के भरोसे को बुरी तरह से तोड़ दिया है।

संवेदनहीन पुलिस: मेडिकल के लिए वाहन तक नसीब नहीं, घंटों थाने में इंतजार

पीड़ित परिवार का आरोप है कि खेरागढ़ पुलिस ने इस दुखद घड़ी में भी मानवीयता नहीं दिखाई। एक गरीब और बेबस पिता को अपनी मासूम बेटी के मेडिकल जांच के लिए थाने से वाहन तक उपलब्ध नहीं कराया गया, बल्कि उनसे खुद किराए का इंतजाम करने को कहा गया। पुलिस का यह कठोर रवैया यहीं नहीं थमा। मेडिकल जांच के नाम पर उस मासूम बच्ची और उसके पिता को थाने में पूरे पांच घंटे तक इंतजार कराया गया। यह घटना पुलिस की उस असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है, जिसपर हाल ही में स्थानांतरित हुए पुलिस कमिश्नर जे रविंद्र गौड़ के शिष्टाचार के पाठ का भी कोई असर नहीं दिखा।

अस्पताल में भी घंटों इंतजार, अगले दिन की तारीख

पुलिस द्वारा किराए के वाहन की व्यवस्था करने के बाद भी पीड़ित परिवार को राहत नहीं मिली। अस्पताल पहुंचने पर मेडिकल जांच के लिए उन्हें तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। और इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे पिता को तब और निराशा हुई जब बिना जांच के ही उन्हें अगले दिन आने के लिए कह दिया गया। यह सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है कि क्या यही वह संवेदनशील पुलिस तंत्र है, जिसकी अक्सर मिसाल दी जाती है?

पीड़ित परिवार की बदहाली पर सिस्टम का दोहरा वार

पीड़ित परिवार की गरीबी भी सिस्टम के दोहरे मार का शिकार हुई। उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर तो मिला, लेकिन उसमें बिजली कनेक्शन तक नहीं है। भीषण गर्मी और अंधेरे के कारण मजबूर होकर परिवार घर के बाहर सो रहा था, और इसी अंधेरे ने उनकी बेटी को दरिंदगी का शिकार बना लिया। यह सिर्फ बिजली विभाग की लापरवाही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री आवास योजना के क्रियान्वयन और निगरानी में भी गंभीर चूक को दर्शाता है।

पुलिस सुधार और संवेदनशीलता के दावों की खुली पोल

हर साल पुलिस सुधार और महिला सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन खेरागढ़ में पुलिस का यह असंवेदनशील चेहरा उन सभी दावों की पोल खोलता है। यह घटना दर्शाती है कि जमीनी स्तर पर पुलिस का रवैया अभी भी कितना उदासीन और प्रक्रिया-केंद्रित है, जबकि पीड़ित की मानवीय पीड़ा को समझने और तत्काल सहायता प्रदान करने की आवश्यकता थी।

जनता का सवाल: क्या पुलिस भी इस अन्याय में भागीदार है?

पीड़ित परिवार और आम जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या इस घटना के लिए सिर्फ दरिंदा ही जिम्मेदार है? क्या वह पुलिस भी इस अन्याय में कहीं न कहीं भागीदार नहीं है, जिसने संवेदनशीलता की बजाय कागजी कार्रवाई और ठंडे पुलिसिया अंदाज में मामले को संभाला?

खेरागढ़ की यह मासूम बच्ची आज भी डर के साए में जी रही है, और उसका परिवार सिस्टम की बेरुखी से और भी टूट गया है। यह सिर्फ एक बच्ची या एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे पुलिस तंत्र की कार्यशैली पर एक बड़ा सवालिया निशान है। क्या हम वाकई बदलाव चाहते हैं, या ऐसी और हृदयविदारक घटनाओं का इंतजार करते रहेंगे? क्षेत्रीय सांसद राज कुमार चाहर ने जरूर पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता दी है और पुलिस व स्वास्थ्य विभाग के रवैये पर नाराजगी जताई है, लेकिन क्या सिर्फ इतना काफी है?

Share This Article
Follow:
प्रभारी-दैनिक अग्रभारत समाचार पत्र (आगरा देहात)
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version