आगरा में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान आचार्य देवकीनन्द ठाकुर का महत्वपूर्ण संदेश

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आगरा में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान आचार्य देवकीनन्द ठाकुर का महत्वपूर्ण संदेश
हृदय लोहा और भगवत कथा है चुम्बक: ऐसी विचारधारा को समाप्त कर देना चाहिए जो हमारे देश और धर्म को नष्ट करे

आगरा। हाल ही में बाह स्थित बजरंग आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य देवकीनन्द ठाकुर ने ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए समाज और धर्म की रक्षा के बारे में महत्वपूर्ण बातें साझा की। आचार्य ने कहा कि यदि कोई विचारधारा हमारे देश और धर्म को नष्ट करने की दिशा में काम कर रही हो, तो उसे समाप्त कर देना चाहिए। उनका कहना था कि आग लगने पर जब पानी की व्यवस्था की जाएगी तो जलने का खतरा बढ़ जाएगा, इसीलिए आग लगने से पहले ही पानी की व्यवस्था कर लेना ज्यादा बेहतर है। अगर हम अब भी सावधान नहीं हुए, तो हमें 15-20 वर्षों में वही दुर्दशा झेलनी पड़ सकती है जो आज बंगाल में हिंदुओं की हो रही है।

मनुष्य का दुख और सुख उसके मन पर निर्भर करता है

आचार्य देवकीनन्द ठाकुर ने कथा में यह भी बताया कि मनुष्य का दुख और सुख सिर्फ उसके मन पर निर्भर करता है। जो मन में ठान लिया वही सुख और दुख बन जाता है। मन के बंधनों को केवल मन से ही तोड़ा जा सकता है। जब तक मनुष्य अपने मन को संस्कारों में लगा रहेगा, वह दुखी रहेगा। वही मनुष्य कष्टों से मुक्त हो सकता है जो अपना मन भगवान के चरणों में लगाता है। उन्होंने यह भी कहा कि “हृदय लोहा और भगवान की कथा चुम्बक है”, यानी जैसे चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींचता है, वैसे ही भगवत कथा मनुष्य के हृदय को भगवान के करीब खींचती है।

आदर्श और संस्कारों का महत्व

आचार्य ने अपने प्रवचन में यह भी कहा कि बड़ों का आदर करने से कभी मान घटता नहीं है, बल्कि बढ़ता है। जो लोग बड़ों का आदर करते हैं, वही सच्चे संस्कारी होते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि आजकल माता-पिता भी फैशन के प्रति ज्यादा जागरूक हो गए हैं, लेकिन बच्चों को संस्कार देने के मामले में उतने गंभीर नहीं हैं। यदि माता-पिता खुद बड़ों का आदर नहीं करेंगे, तो बच्चों में संस्कार कैसे आएंगे? आचार्य ने कहा कि घर में बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे अपने अभिभावकों और बड़ों का आदर करें, ताकि समाज में सही संस्कार फैल सके।

धर्म और पंथ में अंतर

आचार्य ने धर्म और पंथ के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि पंथ मनुष्य द्वारा चलाए जाते हैं, जबकि धर्म केवल सनातन है और यह ईश्वर द्वारा संचालित होता है। इसलिए, संसार में सिर्फ सनातन धर्म ही सच्चा धर्म है, बाकी सभी पंथ हैं। उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा में 28 प्रकार के नर्कों का वर्णन करते हुए कहा कि पराई संपत्ति पर हक जमाना, महिलाओं पर अत्याचार, बच्चों का अपहरण, अहंकार और जीव हत्या जैसे पाप नर्क के मार्ग की ओर ले जाते हैं।

संतान को चरित्रवान बनाना है सबसे बड़ी जिम्मेदारी

आजकल के अभिभावकों को अपनी संतान को चरित्रवान बनाने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। आचार्य ने कहा कि एक अच्छा चरित्र ही किसी भी मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति होता है। अगर आपका चरित्र सही है तो धन और स्वास्थ्य की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि चरित्र के बिना बाकी सभी चीजें बेकार हैं। उन्होंने कहा कि आजकल कई हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के प्रति उदासीन हो गए हैं, और यही समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है।

सनातन बोर्ड की आवश्यकता

आचार्य देवकीनन्द ठाकुर ने सनातन बोर्ड के गठन की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग नहीं चाहते कि सनातन बोर्ड बने, क्योंकि इससे भारत के सभी मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जाएंगे। इसके अलावा, पुरानी परंपराओं को बचाने के लिए गुरुकुल और गौशालाओं का निर्माण भी किया जा सकेगा। आचार्य ने श्रद्धालुओं से पूछा कि क्या उन्हें सनातन बोर्ड के गठन के लिए आगे बढ़ना चाहिए, और सभी श्रद्धालुओं ने इसका समर्थन किया।

आगरा के भक्त प्रेमनिधि की सत्य घटना

आगरा के भक्त प्रेमनिधि की सत्य घटना का उल्लेख करते हुए आचार्य ने बताया कि मुगलों ने हिंदुओं पर कई अत्याचार किए थे। प्रेमनिधि, जो आगरा के ही थे, ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया। शाहजहां ने उन्हें बंदी बना लिया था, लेकिन जब प्रेमनिधि भगवान से जल नहीं चढ़ा पाए, तो भगवान ने शाहजहां को रात के अंधेरे में उनके जेल से रिहा करने का आदेश दिया। यह घटना आज भी हमे अपने धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष की प्रेरणा देती है।

श्रीमद्भागवत कथा के इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए जागरूक और सतर्क रहना होगा। धर्म केवल सनातन है, और यही हमारी पहचान है। अगर हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देंगे और धर्म के मार्ग पर चलेंगे, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा। हमें उन विचारधाराओं को नष्ट करना होगा जो हमारे देश और धर्म को कमजोर कर रही हैं, और एकजुट होकर अपने धर्म की रक्षा करनी होगी।

 

 

 

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