महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती पर हुई हाइब्रिड विचारगोष्ठी
आगरा। महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा घोषित ‘भारतीय भाषा उत्सव’ के उपलक्ष में कन्हैयाहाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ द्वारा सोमवार को एक दिवसीय हाइब्रिड विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया।
केएमआई संस्थान के हिंदी विभाग के अध्यक्ष व कार्यक्रम के संयोजक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने कहा कि विविधताओं के होते हुए भी भारतीयता राष्ट्र को एकसूत्र में बांधती है। यही सम्पूर्ण राष्ट्र की मूल भावना एक है। सुब्रह्मण्यम भारती के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन को गति प्रदान करने के साथ ही जन-जन को प्रेरित करने वाली रचनाएँ की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी ने भाषा के सन्दर्भ में बताते हुए कहा ‘एक भाषा बोली जाती है, एक समझी जाती है। आज मन की भाषा पर चर्चाएँ होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी भाषा एक है, मकसद एक है व गंतव्य भी एक है। विश्वविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के छात्रों के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि एक दूसरे की भाषा को समझना उतना ही जरुरी है जितना समाज द्वारा हमारी भाषा को समझना। उन्होंने यह बताया ‘ परिस्थितियां ही एक नये रूप को जन्म देने की परिस्थिति पैदा करती है और बिना सबकी भागीदारी के, तटस्थ होकर समस्या का समाधान संभव नहीं है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आभासीय माध्यम से जुड़े तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी विद्यापीठ के प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू ने महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की रचनाओं को रेखांकित करते हुए उसकी साम्यता प्रसाद की राष्ट्रीय एकता और चेतना से संपृक्त कविताओं से की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र और विकसित राष्ट्र के लिए देशप्रेम और राष्ट्रीय भावना की आवश्यकता है। साहित्य सृजन में भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है । राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति एकता से ही संभव है और साहित्य जातीय एकता की प्रेरणा है ।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता केन्द्रीय हिंदी संस्थान के नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमापति दीक्षित ने कहा कि हर भाषा का आदर करना चाहिए । हर भाषा हमारी राष्ट्र भाषा है। उन्होंने सुब्रह्मण्य की रचनाओं के बारे में कहा कि उन्होंने अपनी क्रांतिकारी रचनाओं के माध्यम से भारतीय स्वंत्रता आन्दोलन को चरम पर पहुंचाया। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय एकता व स्वतंत्रता की अदम्य चेष्टा की। इनकी रचनाएँ भारतीय सांस्कृतिक सम्पदा की महत्ता का जयघोष करते हुए राष्ट्रीय चेतना का शंखनाद करती हैं। उन्होंने भाषा के सन्दर्भ में बुद्धिजीवियों के प्रभावी हस्तक्षेप को अति आवश्यक बताया।
लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ,दिल्ली के डॉ. देशबंधु शर्मा ने विभिन्न संस्कृतियों में साम्यता बताते हुए संस्कृत को सबका पोषक बताते हुए कहा कि संस्कृत की वैज्ञानिकता भारतीय भाषाओँ का पोषण करती है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. केशव शर्मा ने किया आभार संस्थान के निदेशक प्रो. यू.सी.शर्मा ने किया।
इस दौरान कुलसचिव डॉ. विनोद कुमार सिंह, प्रो. ब्रजेश रावत, प्रो. बिन्दुशेखर शर्मा , प्रो. अनिल गुप्ता, प्रो. लवकुश मिश्रा, प्रो. गिरिजाशंकर शर्मा, पल्लवी आर्य, डॉ.नीलम यादव , डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. आदित्य प्रकाश, अनुज गर्ग, कृष्ण कुमार , पूजा तिवारी तथा शिवानी चौहान आदि उपस्थिति उल्लेखनीय रही।