खूंखार दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, लखनऊ पीजीआई में ली अंतिम सांस

5 Min Read
खूंखार दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, लखनऊ पीजीआई में ली अंतिम सांस

इटावा। अपने समय की जानी-मानी और खूंखार दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन ने आज लखनऊ के पीजीआई में अंतिम सांस ली। 65 वर्षीय कुसुमा नाइन लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से जूझ रही थीं। इटावा जिला जेल में उम्र कैद की सजा काटने वाली कुसुमा को टीबी (तपेदिक) जैसी खतरनाक बीमारी हो गई थी, जो अंतत: उसकी मौत का कारण बनी। कुसुमा का जीवन संघर्षों और अपराधों से भरा रहा। स्कूल की छात्रा से लेकर दस्यु सुंदरी बनने और फिर जेल में अध्यात्म की ओर मुड़ने तक का सफर बेहद कठिन और दिलचस्प था।

कुसुमा नाइन का सफर: स्कूल छात्रा से दस्यु सुंदरी बनने तक

कुसुमा नाइन का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टीकरी गांव में हुआ था। उसका बचपन सुखी था, क्योंकि उसके पिता गांव के प्रधान थे। कुसुमा के जीवन की शुरुआत एक सामान्य लड़की के रूप में हुई थी, लेकिन 13 साल की उम्र में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसका पूरा जीवन बदल दिया। स्कूल के सहपाठी माधव मल्लाह से प्रेम करने के बाद कुसुमा ने घर छोड़ दिया और दोनों दिल्ली भाग गए। यूपी पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया, और बाद में कुसुमा की शादी एक सजातीय लड़के से कर दी गई।

इसके बाद माधव मल्लाह ने अपराध की दुनिया में कदम रखा और धीरे-धीरे वह फूलन देवी और विक्रम मल्लाह के गिरोह में शामिल हो गया। वहीं, कुसुमा का जीवन एक और मोड़ लेने वाला था। उसके प्रेमी माधव मल्लाह ने कुसुमा को अपने गिरोह में शामिल किया, और इस प्रकार कुसुमा का दस्यु जीवन शुरू हुआ।

फूलन देवी से लालाराम गैंग तक का खौ़फनाक सफर

कुसुमा नाइन ने लालाराम गैंग में शामिल होकर कई गंभीर अपराधों को अंजाम दिया। बेहमई कांड के बाद, जब फूलन देवी और लालाराम गैंग एक-दूसरे के दुश्मन बन गए थे, कुसुमा ने लालाराम को मारने के लिए उसकी सुपारी ली। इस दौरान कुसुमा ने अपनी चालाकी से लालाराम को प्यार के जाल में फंसाया, लेकिन बाद में वह सच में लालाराम के प्यार में पड़ गई। इस गैंग में रहते हुए कुसुमा ने लूट, अपहरण और फिरौती की घटनाओं को अंजाम दिया।

कुसुमा का खौ़फ इतना बढ़ गया था कि बुंदेलखंड से लेकर चंबल के बीहड़ों तक उसका नाम सुनते ही लोग डर जाते थे। वह एक बार एक महिला और बच्चे को जिंदा जला देने जैसी क्रूर घटना में शामिल रही। इसके बाद कुसुमा का नाम और आतंक चंबल के दस्यु गिरोहों में गूंजने लगा।

सामूहिक हत्याकांड और सामर्थ्य का परिचय

कुसुमा नाइन ने एक दिन अपने प्रेमी माधव मल्लाह और फूलन देवी के प्रेमी विक्रम मल्लाह की हत्या करने का फैसला किया और उसे अंजाम दिया। 1982 में, जब फूलन देवी ने आत्मसमर्पण किया, कुसुमा चंबल की सबसे खौ़फनाक दस्यु सुंदरी के रूप में पहचान बना चुकी थी।

उसके बाद कुसुमा फक्कड़ बाबा के गिरोह में शामिल हो गई और यहां रहते हुए उसने एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी का अपहरण कर सनसनी फैला दी। इसके बाद कुसुमा पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कई मुकदमे चले।

2004 में आत्मसमर्पण और जेल में अध्यात्म की ओर रुझान

2004 में, कुसुमा ने अपने गिरोह के साथ पुलिस के सामने हथियार डाल दिए और आत्मसमर्पण कर दिया। उसे मध्य प्रदेश की जेलों में रखा गया और बाद में यूपी के इटावा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। यहां कुसुमा का झुकाव धीरे-धीरे अध्यात्म की ओर हुआ। इटावा जेल के अधिकारियों के अनुसार, कुसुमा ने गीता और रामायण जैसी धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया और जेल में अन्य कैदियों को भी धार्मिक शिक्षा देने लगी।

टीबी से मौत: अंतिम दिनों में संघर्ष

कुसुमा नाइन का स्वास्थ्य इटावा जेल में रहते हुए खराब होने लगा। उसे टीबी का संक्रमण हो गया और उसकी स्थिति गंभीर हो गई। जनवरी में उसे सैफई पीजीआई में भर्ती कराया गया, लेकिन बाद में उसे लखनऊ के पीजीआई में शिफ्ट किया गया, जहां उसने अंतिम सांस ली।

कुसुमा की मौत ने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी को खत्म कर दिया, जिसने अपराध की दुनिया में नाम कमाया, लेकिन अंत में उसने अपना जीवन सुधारने की कोशिश की। जेल में रहते हुए कुसुमा ने गहरे पश्चाताप और धार्मिक रुझान के साथ अपना समय बिताया।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version