एटा: एटा में यूपी पुलिस भर्ती के मेडिकल परीक्षण में हुए बड़े घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। पुलिस ने मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अनुभव अग्रवाल समेत दो डॉक्टरों को घूसखोरी के आरोप में रंगे हाथों गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। लेकिन इस कार्रवाई के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन विवादित डॉक्टरों को मेडिकल बोर्ड में शामिल किसने किया?
चौंकाने वाली बात यह है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) उमेश कुमार त्रिपाठी ने स्वयं 19 अप्रैल को डॉ. अनुभव अग्रवाल को मेडिकल बोर्ड का अध्यक्ष नामित किया था। जबकि डॉ. अनुभव पर पहले से ही दिव्यांग बोर्ड में गड़बड़ी की जांच चल रही थी। नियमों को ताक पर रखकर की गई इस मनमानी नियुक्ति पर विभाग के उच्च अधिकारियों की चुप्पी ने कई संदेहों को जन्म दे दिया है।
व्हाट्सएप वीडियो से खुला भ्रष्टाचार का राज, प्राइवेट सेंटर से चल रहा था गोरखधंधा
इस घोटाले का खुलासा तब हुआ जब 8 मई की शाम कोतवाली नगर पुलिस को व्हाट्सएप पर एक वीडियो प्राप्त हुआ। इस वीडियो में मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अनुभव अग्रवाल एक अभ्यर्थी से पैसे लेते हुए और उसका निजी तौर पर परीक्षण करते हुए स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे। वीडियो की सत्यता की पुष्टि के बाद पुलिस ने तत्काल सुमित्रा डायग्नोस्टिक सेंटर पर छापा मारा। यह सेंटर मेडिकल बोर्ड द्वारा अभ्यर्थियों के मेडिकल परीक्षण के लिए एक निजी स्थान के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था।
पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति में छुपाया गया बड़ा सच
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, लेकिन उसमें इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि गिरफ्तार डॉक्टर मेडिकल बोर्ड का अध्यक्ष था। विज्ञप्ति में सिर्फ दो डॉक्टरों की गिरफ्तारी की बात कहकर मामले को सामान्य बताने की कोशिश की गई। प्रशासनिक अफसरों की इस चुप्पी और लीपापोती ने पूरे मामले को और भी संदिग्ध बना दिया है।
बोर्ड अध्यक्ष तो पकड़ा गया, क्या बाकी सदस्य पाक-साफ हैं?
जब मेडिकल बोर्ड का अध्यक्ष स्वयं घूसखोरी में लिप्त पाया गया है, तो बोर्ड के बाकी सदस्यों की जांच क्यों नहीं की जा रही है? सूत्रों की मानें तो मेडिकल बोर्ड के आसपास कई दलाल और स्वास्थ्यकर्मी भी सक्रिय थे, जो इस भ्रष्टाचार के खेल में शामिल हो सकते हैं। वहीं, यह भी सवाल उठ रहा है कि सीएमओ कार्यालय में तीन-तीन सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसीएमओ) और उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी (डिप्टी सीएमओ) होते हुए भी एक विवादित अफसर को मेडिकल बोर्ड का अध्यक्ष क्यों बनाया गया?
मेडिकल कॉलेज से जोड़कर जिम्मेदारी से बचने का प्रयास
घोटाले के उजागर होने के बाद कुछ अधिकारियों ने इस मामले को मेडिकल कॉलेज से जोड़कर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की। हालांकि, राजकीय मेडिकल कॉलेज की सीएमएस (मुख्य चिकित्सा अधीक्षक) डॉ. रजनी पटेल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मेडिकल बोर्ड चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत नहीं आता है और न ही मेडिकल कॉलेज का कोई भी डॉक्टर इस बोर्ड में शामिल है।
अब जनता पूछ रही है: सीएमओ को बचाने की कोशिश क्यों?
गौरतलब है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी उमेश कुमार त्रिपाठी जुलाई में अपने पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं और आरोप है कि वह इस दौरान अपने चहेतों से काम निकलवाने में जुटे हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शासन इस गंभीर मामले में सिर्फ दो डॉक्टरों की गिरफ्तारी को ही अपनी सफलता मान लेगा या फिर सीएमओ जैसे जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कोई कार्रवाई की जाएगी? इस पूरे घटनाक्रम ने एटा के स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ों को उजागर कर दिया है और अब जनता इंसाफ की उम्मीद कर रही है।