आगरा: संन्यास के फैसले पर अटल राखी, बोलीं- ‘अपनों ने ही किया विरोध, गुरुजी पर लगे आरोप गलत’

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आगरा: प्रयागराज महाकुम्भ में संन्यास लेने और फिर कुछ दिनों बाद ही संन्यास वापस लेने के बाद आगरा की राखी, अब गौरी गिरि के नाम से पहचानी जाती हैं, अपने गांव टरकपुर लौट आई हैं. उन्होंने अपने नए नाम को ही अपनी पहचान बना लिया है और परिचय में वह खुद को गौरी गिरि ही बताती हैं. इस बीच, गौरी गिरि ने अपने संन्यास के फैसले और उसके बाद हुए घटनाक्रम पर कई बातें कहीं हैं.

गौरी गिरि का बयान:

गौरी गिरि का कहना है कि उनके संन्यास लेने के फैसले में उनके अपने ही लोग विरोधी बन गए थे. उन्होंने बताया कि उनके मौसा-मौसी, भाई-बहन, सभी उनके खिलाफ थे. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके पिता के एक बिजनेस पार्टनर ने उनके साथ बेईमानी की थी, जिसके बाद उनके पिता ने उसे पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति से उठवा लिया था. तभी से वह व्यक्ति उनके परिवार से दुश्मनी मानता है और अब बदला ले रहा है.

गुरुजी पर लगे आरोपों पर प्रतिक्रिया:

गौरी गिरि ने अपने गुरुजी पर लगे आरोपों को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि वह तीन साल पहले अपने गुरुजी से तब मिली थीं जब वे उनके गांव में भागवत कथा कहने आए थे. उन्होंने अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज, प्रेम गिरि महाराज और नारायण गिरि महाराज से हाथ जोड़कर विनती की है कि उनके गुरु पर गलत आरोप लगाए गए हैं और उन्हें अखाड़े में वापस लिया जाए.

संन्यास का फैसला और परिजनों की प्रतिक्रिया:

गौरी गिरि ने स्पष्ट किया कि संन्यास लेने का फैसला उनका अपना था. उन्होंने अपने परिजनों से कह दिया था कि अगर उन्हें संन्यास नहीं लेने दिया गया तो वह गंगा में डूब कर जान दे देंगी. इसके बाद ही उनके परिवार ने उन्हें संन्यास लेने की अनुमति दी थी.

संन्यास पर अटल:

गौरी गिरि ने कहा कि वह संन्यास लेने के अपने फैसले पर आज भी अटल हैं. भले ही वह अखाड़े से बाहर हैं, लेकिन वह साध्वी के रूप में ही रहेंगी. अब वह वृंदावन के एक गुरुकुल में पढ़ाई करेंगी.

बचपन से थी संन्यास की इच्छा:

गौरी गिरि ने बताया कि उन्हें बचपन से ही संन्यास लेने की इच्छा थी, लेकिन उनके परिजनों ने उन्हें हमेशा मना किया था. विगत 25 दिसंबर को जब वह परिवार के साथ महाकुम्भ पहुंचीं, तो उनका मन विचलित हो गया और वह खुद को रोक नहीं पाईं. उनकी जिद के आगे उनके परिवार को उनकी इच्छा का सम्मान करना पड़ा. महाकुम्भ पहुँचने के बाद उन्हें लगा कि बचपन की जो इच्छा है, उसे आज ही पूरी कर लेनी चाहिए. जब उन्होंने इस बारे में अपने घर वालों को बताया, तो उनका कहना था कि संन्यास आसान नहीं है, साध्वी बनना लोहे के चने चबाने के समान है, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रहीं. तब उनके माता-पिता ने गुरुजी से कहा था कि वही करें जो उनकी बेटी चाहती है. गुरुजी का आशीर्वाद मिलने के बाद ही उन्होंने भगवा वस्त्र धारण कर लिए थे.

 

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