भारत में ईंधन की कीमतें पिछले कुछ महीनों से ऊंची बनी हुई हैं। पेट्रोल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर के करीब हैं और डीजल की कीमतें 90 रुपये प्रति लीटर के करीब हैं। ईंधन की ऊंची कीमतों से आम जनता का जीवन कठिन हो गया है।
ईंधन की कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि है। कच्चा तेल ईंधन का मुख्य कच्चा माल है और इसकी कीमतें वैश्विक बाजार में निर्धारित होती हैं। पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है।
इसके अलावा, रुपये के मूल्य में गिरावट से भी ईंधन की कीमतों में वृद्धि हुई है। रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण कच्चा तेल आयात करना भारत के लिए अधिक महंगा हो गया है।
ईंधन की ऊंची कीमतों से कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। सबसे पहले, यह मुद्रास्फीति को बढ़ाता है। ईंधन की कीमतों में वृद्धि से परिवहन और उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
दूसरा, ईंधन की ऊंची कीमतों से आर्थिक विकास प्रभावित होता है। परिवहन और उत्पादन की लागत बढ़ने से उद्योगों का मुनाफा कम होता है और निवेश घटता है।
तीसरा, ईंधन की ऊंची कीमतों से आम जनता का जीवन कठिन हो जाता है। ईंधन की कीमतों में वृद्धि से लोगों के घरेलू बजट गड़बड़ा जाते हैं और उन्हें अपनी आवश्यक जरूरतें भी पूरी करने में मुश्किल होती है।
सरकार ईंधन की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय कर रही है। इन उपायों में उत्पाद शुल्क में कमी और ईंधन निर्यात पर प्रतिबंध शामिल हैं। हालांकि, इन उपायों का प्रभाव अभी तक दिखाई नहीं दिया है।
ईंधन की ऊंची कीमतों से निपटने के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ानी चाहिए। इसके अलावा, भारत को अपनी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत करना चाहिए ताकि लोग निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें।