बृज खंडेलवाल
भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल एक सूचना प्रदाता है, बल्कि यह सत्ता पर निगरानी रखने, सरकार को जवाबदेह ठहराने और नागरिकों के बीच जागरूकता फैलाने का भी काम करता है। पत्रकारिता एक सशक्त लोकतंत्र के लिए न केवल आवश्यक है, बल्कि यह उसकी रीढ़ की हड्डी के समान है। अगर मीडिया स्वतंत्र और जिम्मेदार न हो, तो लोकतंत्र पंगु हो सकता है।
पत्रकारिता और लोकतंत्र का संबंध
राजनीतिक टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “एक सूचित नागरिक कार्यशील लोकतंत्र के लिए जरूरी है क्योंकि यह नागरिकों को राजनीतिक विमर्श और सामाजिक मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने का अधिकार देता है।” पत्रकारिता न केवल सार्वजनिक बहस को बढ़ावा देती है, बल्कि यह सामूहिक निर्णय लेने और समाज की प्रगति के लिए एक मंच प्रदान करती है।
हालांकि, भारत के गैर-मेट्रो क्षेत्रों में पत्रकारों को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सबसे प्रमुख चुनौती प्रेस की स्वतंत्रता है, जो अक्सर सत्ता के दबाव में होती है। पत्रकारों को कई बार धमकी, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है, विशेषकर जब वे भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक तनाव या सरकारी दुराचार जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं।
पत्रकारों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ
वरिष्ठ पत्रकार अजय झा के अनुसार, “प्रतिशोध के डर से आत्म-संवेदनशीलता उत्पन्न हो सकती है, जो खोजी पत्रकारिता के मूल सार को दबा देती है, जिस पर लोकतंत्र निर्भर करता है।” इसके अलावा, पत्रकारों के बारे में अक्सर यह आरोप लगते हैं कि वे पक्षपाती हैं या झूठी खबरें फैलाते हैं, लेकिन कोई भी उनके अत्यधिक तनावपूर्ण कामकाजी हालात, खराब वेतन और सीमित संसाधनों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता।
मीडिया और पीआर से जुड़ीं मुक्ता गुप्ता कहती हैं, “आज के डिजिटल युग में समाचारों के तेजी से डिजिटलीकरण ने ‘मांग वाले बाजार’ को जन्म दिया है, जहां पत्रकारों को उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री के साथ-साथ विभिन्न प्लेटफार्मों पर भी कार्य करने की आवश्यकता है।” इसके साथ ही, झूठी खबरों का प्रसार भी पत्रकारों के कार्य को जटिल बनाता है, क्योंकि अब उनका काम न केवल सटीक जानकारी देना है, बल्कि झूठी खबरों का मुकाबला करना और सूचना की विश्वसनीयता बनाए रखना भी है।
प्रोफेशनल डेवलपमेंट की कमी
अनुभवी मीडिया सलाहकार तपन जोशी का कहना है, “संसाधनों और प्रशिक्षण की कमी, विशेषकर गैर-मेट्रो क्षेत्रों में, पत्रकारों के सामने और भी बड़ी चुनौतियाँ खड़ी करती है। अधिकांश पत्रकारों को पेशेवर विकास के अवसर नहीं मिलते, जो उनके कौशल को बढ़ाने और विकसित होते मीडिया परिदृश्य के अनुरूप उन्हें तैयार करने में सहायक होते।”
पत्रकारिता में कड़ी मेहनत और जिम्मेदारी
पत्रकारिता को सिर्फ एक पेशा नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाना चाहिए। पत्रकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सच लिखें, सत्ता से सवाल करें, भ्रष्टाचार और अन्याय का पर्दाफाश करें और लोकतंत्र की रक्षा करें। यह कार्य न केवल मानसिक और शारीरिक रूप से थकाऊ है, बल्कि कई बार जोखिम भरा भी हो सकता है। जब पत्रकारों को धमकी मिलती है, तो न तो उनके नियोक्ता और न ही प्रशासन उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं।
कई पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर समाचार कवर करते हैं, खासकर प्राकृतिक आपदाओं, दंगों, भूकंप, दुर्घटनाओं और यहां तक कि महामारी के दौरान भी। महामारी के दौरान, खासकर फोटो पत्रकारों ने अपनी जान की परवाह किए बिना समाचार कवर किए।
मीडिया में अवांछनीय तत्वों का प्रभाव
हालांकि, जैसे हर व्यवसाय में कुछ गलत तत्व घुस आते हैं, वैसे ही मीडिया में भी कुछ भ्रष्ट तत्व पाए जाते हैं, जिनके कारण पूरी मीडिया बिरादरी को बदनाम किया जाता है। हालांकि यह भी सही है कि कुछ पत्रकार राजनीतिक नेताओं और कारपोरेट्स के दबाव में काम करते हैं। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि कोई भी मीडिया संस्थान अपने ईमानदारी और विश्वसनीयता को दांव पर लगाकर लंबे समय तक नहीं टिक सकता।
भारत में मीडिया सच्चाई के योद्धाओं और लोकतंत्र के रक्षकों की लंबी परंपरा रही है। इनमें से कुछ पत्रकारों ने शासकों और सत्ता के खिलाफ खड़े होकर अपने कर्तव्य का पालन किया। इन दिनों कुछ अवांछनीय प्रवृत्तियाँ उभर रही हैं, क्योंकि तथ्य, राय और कल्पना के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। फिर भी, मीडिया ने इन बदलती परिस्थितियों में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास किया है और यह सुनिश्चित किया है कि सच्चाई और जिम्मेदारी से कहीं अधिक दबाव नहीं आ सके।