भोपाल गैस त्रासदी दिवस: आगरा में लापरवाही का आलम, क्या हमने सीखा है?

Dharmender Singh Malik
4 Min Read
भोपाल गैस त्रासदी दिवस: आगरा में लापरवाही का आलम, क्या हमने सीखा है?

आगरा में भोपाल गैस त्रासदी के सबक को नकारते हुए, औद्योगिक लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अवहेलना से हादसों का खतरा बढ़ता जा रहा है। जानें कैसे आगरा में सुरक्षा की अनदेखी हो रही है।

आगरा: आज, 3 दिसंबर को भोपाल गैस त्रासदी की दुखद यादों के साथ, यह सवाल उठता है कि क्या हम वाकई उस भयानक घटना से कुछ सीख पाए हैं? 1984 में भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने हजारों जिंदगियाँ लील ली थीं और यह दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है। लेकिन आज भी, आगरा में हम उसी लापरवाही का सामना कर रहे हैं, जिसे 40 साल पहले भोपाल में देखा गया था।

आगरा में औद्योगिक लापरवाही

आगरा का औद्योगिक परिदृश्य आज भी सुरक्षा मानकों की अवहेलना से ग्रस्त है। कई इलाकों में खतरनाक पदार्थों से भरी फैक्ट्रियाँ और गोदाम अवैध रूप से स्थापित हैं, जिनका सुरक्षा प्रोटोकॉल महज कागजों तक सीमित है। इस लापरवाही का नतीजा यह है कि आए दिन शहर में आग लगने और अन्य औद्योगिक दुर्घटनाओं की घटनाएं होती रहती हैं।

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लोक स्वर संस्था के अध्यक्ष राजीव गुप्ता कहते हैं, “आगरा में आज भी हम उस आत्मसंतुष्टि की अवस्था में हैं कि कोई खतरा नहीं है, जबकि हम भोपाल गैस त्रासदी से कुछ भी नहीं सीखे। अगर यही स्थिति जारी रही तो आने वाले समय में हम एक और आपदा का सामना कर सकते हैं।”

नियमों की अवहेलना

पर्यावरणविद् देवाशीष भट्टाचार्य का मानना है कि देशभर के शहरी क्षेत्रों में आपदाएँ घटित होने के कगार पर हैं, क्योंकि नागरिक अधिकारियों की उदासीनता के कारण सुरक्षा मानकों का पालन नहीं हो रहा है। “भोपाल गैस त्रासदी की खौ़फनाक यादों के बावजूद, आगरा में स्थिति बिल्कुल वही है। यहाँ के कचरा प्रबंधन, सीवेज व्यवस्था और औद्योगिक लापरवाही कहीं न कहीं किसी बड़ी आपदा को आमंत्रित कर रहे हैं,” भट्टाचार्य कहते हैं।

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आगरा नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते, शहर में सीवेज का निपटान सही तरीके से नहीं हो रहा है। गटरों में गंदगी और मीथेन गैस का रिसाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे शहर किसी भी वक्त एक विस्फोटक स्थिति में पहुंच सकता है।

आगरा में हर गली में एक “भोपाल”

आगरा के विभिन्न मोहल्लों में अवैध गोदाम, कारखाने और खतरनाक गैसों को छोड़ने वाली फैक्ट्रियाँ बसी हुई हैं। आगरा के कई इलाकों में स्टीम बॉयलर वाली तेल मिलें, कोल्ड स्टोरेज और चोक सीवर लाइनें काम कर रही हैं, जो शहर के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन की उदासीनता ने इस खतरे को नकार दिया है।

गृहिणियों की लापरवाही और जानमाल का खतरा

घर के अंदर भी सुरक्षा की हालत कुछ ज्यादा बेहतर नहीं है। गृहिणी पद्मिनी अय्यर कहती हैं, “लोग गैस सिलेंडर की पाइपलाइनों और बिजली की फिटिंग के बारे में सचेत नहीं रहते, जिसके कारण अक्सर शॉर्ट-सर्किट होते हैं। अग्नि सुरक्षा उपकरणों का सही तरीके से काम न करना और ऊँची इमारतों में लिफ्ट सुरक्षा की जांच न होना आम समस्या बन चुकी है।”

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आगरा में भले ही हालात बेहतर होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन लापरवाही का आलम यह है कि हर दिन एक नई आपदा का खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा मानकों की उपेक्षा और कानून के प्रति लापरवाही, न केवल हमारे जीवन को संकट में डालती है, बल्कि भोपाल जैसे हादसों के पुनरावृत्ति का कारण भी बन सकती है। यह वक्त है कि हम सभी मिलकर अपने आसपास की सुरक्षा को प्राथमिकता दें और प्रशासन से इस दिशा में सख्त कदम उठाने की मांग करें।

बृज खंडेलवाल

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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