India Alliance: राजनीतिक गहमागहमी के बीच रालोद की एनडीए में वापसी की प्रबल संभावना है। करीब 14 साल बाद भाजपा और रालोद के बीच हुई बातचीत को सकारात्मक माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति की धुरी चौधरी जयंत सिंह बन गए हैं। NDA के साथ बातचीत शुरू होने के बाद हर किसी की नजर उन पर ही टिकी है। सभी जानना चाहते है कि वो क्या फैसला लेते है। चूँकि वेस्ट की अधिकतर सीटों पर जाट मतदाता हैं तो उनका फैसला चुनाव को प्रभावित कर सकता हैं। इसलिए सपा व कांग्रेस के तेवर भी ढीले हुए हैं और वे भी जयंत को मनाने में जुटे हैं।
वेस्ट यूपी की बागपत, कैराना, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बिजनौर, नोएडा, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, पीलीभीत, बरेली, आंवला, बदांयू, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, आगरा, अलीगढ़, हाथरस सीटों पर जाट वोटर हैं।
इनमें अधिकतर सीटों की यह स्थिति है कि वहां जाट वोटर चुनाव प्रभावित कर सकता है और जाटों को सबसे ज्यादा रालोद के साथ माना जाता है। ऐसे में रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह की एनडीए के साथ जाने को लेकर बातचीत शुरू हुई तो सपा व कांग्रेस को चुनावी गणित बिगड़ने की चिंता हो गई है। इसलिए अब वह भी जयंत को मनाने में जुट गए हैं।
बताया जा रहा है कि जयंत के साथ तय हुई सात सीटों में जहां अभी तक तीन पर अपने प्रत्याशी उतारने का दबाव बना रही थी, वहीं अब वह रालोद के प्रत्याशी ही उतारने के लिए राजी हो गई है। वहीँ कांग्रेस भी राजस्थान में एक लोकसभा सीट देने को तैयार है। अब हर किसी की नजर जयंत पर है कि वह क्या फैसला लेते हैं ।
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जाट भावनात्मक रूप से हैंडपंप से लगाव, इसलिए इस निशान की चाहत
रालोद पार्टी व नल के निशान के साथ काफी सीटों पर जाट भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। इसलिए ही माना जा रहा है कि सपा अपने प्रत्याशियों को रालोद के सिंबल पर उतारना चाहती थी। वह कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर सीट पर अपने प्रत्याशी को रालोद के सिंबल पर उतारने की पूरी तैयारी कर चुके थे। इस पर ही विवाद बढ़ा और सपा का यह दांव उस पर ही भारी पड़ गया।