उधार ली गई हॉकी स्टिक से जूनियर टीम की कप्तान बनी प्रीति

Dharmender Singh Malik
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नई दिल्ली । भारतीय महिला जूनियर हॉकी टीम की कप्तान प्रीति का यहां तक का सफर बेहद कठिन रहा है।
हरियाणा के सोनीपत की प्रीति के घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। प्रीति 10 साल की उम्र से मैदान में हॉकी खेलने जाती थीं। वही से प्रीति को हॉकी में दिलचस्पी बढ़ गई और उसने परिवार को बिन बताए उधार ली गई हॉकी स्टिक से खेलना शुरु कर दिया। इसी का परिणाम है कि वह आज भारतीय टीम तक पहुंची है। प्रीति का सपना है कि देश के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना।

पिता शमशेर सिंह का कहना है कि वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी खेलने के लिए बाहर जाए, लेकिन प्रीति छुपकर भी बाहर खेलने गई है। वह आकर ही बताती थी कि वह मैदान पर खेलने के लिए गई थी पर उसकी मेहनत रंग लाई और उसका चयन जूनियर महिला हॉकी टीम की कप्तान के रूप में हुआ। प्रीति की कोच व पूर्व महिला हॉकी टीम की कप्तान प्रीतम सिवाच का कहना है कि हमारे मैदान की बेटियां जब अच्छा खेलते हुए टीम में चयनित होती हैं, तो हमें बहुत खुशी होती है। इस मैदान से तीन खिलाड़ियों का सिलेक्शन जूनियर हॉकी टीम में हुआ है। जिनमें से प्रीति जूनियर हॉकी टीम की कप्तान बनी है।

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प्रीति के अनुसार बचपन में उसके माता-पिता नहीं चाहती थी कि वह खेलने के लिए बाहर जाए, लेकिन वह आपने मां-पापा से झूठ बोलकर मैदान पर खेलने के लिए जाती थीं, उसे बचपन से ही खेलने का शौक था, लेकिन जब उसके आस पड़ोस के बच्चे मैदान पर खेलने के लिए जाते थे तो वह भी उनके साथ छुपकर खेलने आ जाती थी। प्रीति ने कहा कि कभी उसके पासा आहार के लिए भी पूरे पैसे नहीं होते थे। इस कारण उसके माता पिता ने रात भर काम किया है। वहीं प्रीति ने कहा कि आज परिवार की मेहनत से मैं यहां मुकाम तक पहुंची हूं। प्रीति अपनी सफलता का श्रेय अपने कोच प्रीतम सिवाच और अपने माता-पिता को दे रही है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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