आसरा सेंटर घोटाला: भाजपा नेता पर मेहरबान जनप्रतिनिधि और एलिमको, दिव्यांगों का हक हड़पने का आरोप

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आगरा: दिव्यांगों को मिलने वाली सुविधाओं को हड़पने के आरोप में घिरे कथित भाजपा नेता देवेंद्र सविता पर सत्ताधारी दल के नेताओं और विभागीय अधिकारियों का संरक्षण जारी है। दिव्यांगों को मिलने वाली सुविधाओं को हड़प कर कथित रूप से अपनी जेब भरने वाले घोटालेबाज कथित भाजपा नेता का रुआब काम नहीं हुआ है। बुलंद हौसलों के साथ अपने आकाओं के संरक्षण में धड़ल्ले से आसरा सेंटर पर मनमानी को अंजाम दिया जा रहा है।

आपको बता दें कि आगरा के ककुआ स्थित आसरा सेंटर पर विगत में हुए उपकरणों के वितरण में घोटाले का भंडाफोड़ हो चुका है। आसरा सेंटर का कार्यभार, विवादित कथित भाजपा नेता देवेंद्र सविता के पास है। उसके विवादित कारनामों को देखते हुए भाजपा जिलाध्यक्ष गिर्राज सिंह कुशवाह ने उससे किनारा करते हुए संगठन से हटाने की बात कही थी।

संगठन से हटाए जाने के बावजूद सताधारी जनप्रतिनिधियों का देवेंद्र सविता से मोहभंग नहीं हुआ। उसके द्वारा आयोजित हुए शिविर में एक जनप्रतिनिधि ने सहभागिता की। देवेंद्र सविता के घोटालों के बाबत पूछे जाने पर कन्नी काट ली। नियमों को धता बताकर दर्जनों दिव्यांगों को एक बार से अधिक उपकरण वितरित किए जाने के विषय को तकनीकी त्रुटि बताकर पल्ला झाड़ा गया। अपने घोटालों का पर्दाफाश होने से देवेंद्र सविता पर तनिक भी शिकन नहीं है।

एलिमको कंपनी के अधिकारियों के संरक्षण में उसके द्वारा सेंटर मद में मिलने वाली सुविधाओं को हजम किया जा रहा है। सेंटर सिर्फ एक कमरे में संचालित है। यहां पर आने वाले दिव्यांगों को बैठने तक की जगह मुहैया नहीं है। जबकि सीएसआर फंड से दिव्यांगों को पूर्ण सुविधा उपलब्ध कराने का नियम है।

अपने को स्वयंभू माननीय घोषित कर चुका है देवेंद्र सविता

देवेंद्र सविता के कारनामों की फेहरिस्त काफी लंबी है। विगत में जिला दिव्यांग विभाग द्वारा किरावली के एक इंटर कॉलेज में दिव्यांगों को ट्राइसाइकिल वितरित की गई थी। उन ट्राइसाइकिल पर देवेंद्र सविता द्वारा नियमों के विरूद्ध जाकर अपने नाम के आगे माननीय लिखा गया था। जबकि माननीय शब्द सिर्फ जनप्रतिनिधियों और उच्च पदस्थ लोगों के लिए प्रयोग होता है।

घोटालों का जवाब देने से बच रहे एलिमको के अधिकारी

बताया जाता है कि अग्र भारत द्वारा घोटाले की तह में जाते हुए एलिमको के कानपुर स्थित कार्यालय पर तैनात अधिकारियों से दूरभाष पर संपर्क साधा गया। उनसे विभिन्न सवालों के जवाब मांगे गए। शुरूआत में उनके द्वारा ईमेल पर जवाब देने की बात कही गई। ईमेल भेजने पर उन्होंने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा गया। इसके बाद दूरभाष पर दुबारा वार्ता करने पर कंपनी के अधिकारी एक दूसरे पर बात घुमाते रहे।

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