फतेहपुर सीकरी: फिरौती के लिए अपहरण के मामले में चार आरोपी 22 वर्ष बाद बरी हो गए हैं। ये मामले वर्ष 2002 के थे, जब दो ग्रामीणों का अपहरण कर उन्हें यातनाएं दी गई थीं। पुलिस की लापरवाही और साक्ष्यों में विरोधाभास के कारण आशाराम, मेवाराम, सुल्तान सिंह और जोधा निषाद को एडीजे 12 महेंद्र कुमार ने बरी करने का आदेश दिया।
वर्ष 2002 में हुआ था अपहरण
इस मामले के अनुसार, 14 जनवरी 2002 को उदय सिंह ने पुलिस में तहरीर दी थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके सगे भाई भगवान सिंह और चचेरे भाई रामनिवास को अपहृत कर लिया गया था। दोनों लोग सरसों के खेत में पानी लगाने गए थे, लेकिन अगले दिन जब उनकी तलाश की गई, तो वे नहीं मिले। बाद में, उनके खेत के पास कई पैरों के निशान मिले और घटनास्थल पर एक सरसों की फसल बिछी हुई पाई गई।
इसके बाद, आरोपियों ने फिरौती के लिए वादी को दो पत्र भेजे थे और 35 दिन बाद फिरौती वसूलने के बाद दोनों अपहृत व्यक्तियों को मुक्त कर दिया। आरोपियों ने उन्हें पहले सूखे कुएं में रखा और फिर पेड़ से जंजीर से बांधकर रखा था। अंततः फिरौती मिल जाने के बाद उन्हें 15 रुपये देकर मुक्त कर दिया गया।
पुलिस की लापरवाही और विरोधाभास
इस मामले में पुलिस ने कई गलतियां कीं, जिनकी वजह से आरोपी बरी हो गए। आभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए गवाहों में भी विरोधाभास पाए गए। अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि अपहृत व्यक्तियों को कुंए में यातनाएं दी गईं, और ना ही फिरौती भेजने वाले व्यक्ति को गवाह के रूप में पेश किया गया। इसके अलावा, पुलिस ने अपहृत व्यक्तियों का मेडिकल रिपोर्ट भी अदालत में पेश नहीं किया और न ही फिरौती भेजने के पत्र को प्रमाण के रूप में पेश किया।
वहीं, अपहृत व्यक्तियों के बयान में भी गंभीर विरोधाभास पाया गया, जो पूरे मामले को संदिग्ध बनाता है। इन सब कारणों से एडीजे 12 महेंद्र कुमार ने आरोपियों को बरी कर दिया।
आरोपी की मौत के बाद कार्यवाही खत्म
मामले में एक आरोपी विजय शरण उर्फ वकील की मृत्यु हो जाने के बाद, अदालत ने उसके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी। इसके साथ ही, मामले में कुल चार आरोपियों में से तीन को बरी कर दिया गया।
पीड़ितों का अतीत
विधायक उदय सिंह और रामनिवास ने यह भी बताया कि रामनिवास का अपहरण पूर्व में भी हो चुका था, इससे पहले भी एक अपहरण का मामला सामने आया था।
अभियोजन पक्ष की पैरवी
इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद कुमार शर्मा और मनीष पाठक ने मुकदमे की पैरवी की। हालांकि, पुलिस द्वारा लापरवाही और साक्ष्यों की कमी के कारण आरोपी बरी हो गए।